पिछली पोस्ट में मैंने आपसे वायदा किया था की रचना बी के और भी किस्से मै आपको समय समय पर सुनाता रहूँगा | अब पाठक मित्रों के आग्रह पर उनका ये दूसरा किस्सा सुनिए |
हुआ यू की हमारे मोहल्ले में रहने वाले पंडित हीरानंद जी शास्त्री रामायण के बहुत बड़े भक्त और विद्वान है | आस पास में रामायण का पाठ करने जब तब जाते रहते है | एक दिन वो भी चढ़ गए रचना बी के चक्कर में और वो ही क्या जो भी अपने आप को बड़ा ताऊ समझता है वे सभी रचना बी के साथ पंगे ले चुके है | पूरा गाँव भर जानता है की रचना बी के साथ पंगा लेने का अंजाम क्या है | उनसे पहले वो खाज जाटिया जिसकी कपडे की दूकान है और वो मालीत शर्मा जो पत्रकार है ,और भी ना जाने कितने सक्सेना,शर्मा,खत्री,पत्री,जोसेफ,थोमस आदि को पंगा लेना भारी पड गया था | खैर लम्बी लिस्ट है लेकिन आज चक्कर में चढ़े हीरानन्द शास्त्री जी |
शास्त्री जी और रचना जी दोनों बहस करते हुए मेरी दूकान पर आये| रचना कह रही थी की तुलसी नारी विरोधी है जबकी शास्त्री जी कह रहे थे की तुलसी जी नारी को पूजनीय मानते है और पूरा सम्मान देते है | रचना ने अपनी बात के पक्ष में रामायण की एक चौपाई कही की
ढोल गंवार शुद्र पशु नारी,ये सब ताडन के अधिकारी || (जिसका अर्थ रचना बी ने बताया की ढोल(बाजा ),गंवार मनुष्य, निम्न जाती का मनुष्य, पशु और नारी ये सब जर्मन मेड लठ के लायक है )
जब की पंडितजी अपनी बात को मजबूत करने हेतु दूसरी चौपाई कही "धीरज धरम मित्र अरू नारी आपति काल परखिये चारी || (जिसका अर्थ पंडितजी ने बताया की धैर्य ,धर्म ,मित्र और नारी ये सब विपत्ति के समय काम आने वाले सिद्ध होते है |
दोनों के तर्क देख का एक बरगी हम जैसे अज्ञानियों का भी सर चकराया लेकिन क्या करते बच कर निकने का कोइ रास्ता भी तो नहीं था |
हमने कहा ये बात पूरा गाँव जानता है रचना बी आपने हमेशा ही अर्थ का अनर्थ किया है | आप अपनी बातों से पानी में आग लगा सकती है | ये बेचारे सीधे साधे पंडितजी तुम्हारे चक्कर में चढ़ गए है लेकिन बात तुलसी दास जी की है सो गलत कभी नहीं हो सकती है | आपने अपनी चौपाई में एक छोटे से कोमा को हटा कर पूरा अर्थ ही बदल दिया है | यहां तुलसी दास जी ने पशु और नारी दोनों को अलग नहीं किया है उनका आशय पशु समान नारी से है | जो नारी पशु समान व्यवहार करेगी जर्मन मेड लठ खायेगी ही उसे ना आप बचा सकती है और न ही तुलसी दास जी |
आप घर जाओ कुछ ज्ञान ध्यान की और बाते पढ़ो तब पता चलेगा| रचना बी की हालत घायल नाग जैसी हो गयी अब फिर कभी ना कभी नया हमला करने की तैयारी में है | आल इज वैल ...आल इज वैल...
(नोट -उपरोक्त व्यंग का सम्बन्ध किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से नहीं है ,फिर भी अगर कोइ अपना सम्बन्ध इससे जोड़ना चाहे तो ये उसकी मर्जी है| )
इन्हें भी देखे
@नरेश जी सब कुछ समझ में आया पर ये रचना बी समझ में कोन्या आई या के चीज सै जरा बताओ तो
ReplyDeleteबड़ी अलग ही रही व्याख्या।
ReplyDeleteम्हे बग्गड़ आस्यां तो रचना बी सुं मिलस्यां।
ReplyDeleteजय माता दी।
भाई ....सब मानसिकता की बात है ...आपकी व्याख्या भी सही है ...शुक्रिया
ReplyDeleteआप घर जाओ कुछ ज्ञान ध्यान की और बाते पढ़ो
ReplyDeleteजो आज्ञा श्रीमान :)
कबीरा तेरी झोंपडी गल कटियन के पास
करेंगें सो भरेंगें, तूं क्यो भये उदास !!
achchhi kahi aapne...
ReplyDeleteaur kya kaha hi ja sakta hai.
ओह! यह कथा-व्यथा तो मालूम ही ना थी, पद्मावलि से इधर आए तो खबर हुई
ReplyDeleteचलिए, आपने इसी बहाने एक गंभीर लेख लिख ही दिया
हे प्रभु ...
ReplyDeleteरचना बी के इतने भक्त हैं मुझे नहीं पता था.... अब आप ही बताओ .... घुटने के अलावा और क्या टेक सकता हूँ रचना बी के आगे ...
वाह जी वाह बहुत सुंदर लेख. मेरी नजर क्यो नही पढी पहले इस लेख पर, वो तो मुझे पद्म सिंह जी के ब्लाग पर यह आप का लिंक मिला तो सोचा चलिये हम भी इन बी.... जी .... को प्रणाम कर ले, धन्य हुये जी इन से मिल कर.अब पंगा कोन लेगा इन से?
ReplyDeleteधन्यवाद