यह कविता संग्रह उन्होने तब लिखा था जब वे कुछ समय नोकरी के सिलसिले मे बाहर गये थे । बाहर कमाने के लिये गये हुये कवि के मन कि कसक और व्यथा का उन्होने सजीव और मार्मिक चित्रण किया है । म्हारी बात नामक शीर्षक मे उन्हीं के शबदो मे
“ दिसावर री हांफला भरती जिंगाणी
भीड़...... भीड़...... भीड़......
भीड़ माय चिथ्योडी खुद री छाया नै बचावतो म्हारो मन
जद कई कई दिना तक म्हारे कने नही हुतो
उण वखत
बस ऐ दूहा ही संगी साथी हा ।
लोग न जाणै कायदा ना जाणै अपणेस ।
राम भलाईँ मौत दे मत दीजै प्रदेश ||
ना सुख चाहु सुरग रो नरक आवसी दाय।
म्हारी माटी गांव री गळियाँ जै रळ जाय॥
म्हारी माटी गांव री गळियाँ जै रळ जाय॥
जोगी आयो गांव सूँ ल्यायो ओ समचार ।
काळ पड्यो नी धुक सक्यो दिवलाँ रो त्युहार् ॥
इकतारो अर गीतडा जोगी री जागीर ।
घिरता फिरतापावणा घर घर थारो सीर ॥
घिरता फिरतापावणा घर घर थारो सीर ॥
आ जोगी बंतल कराँ पूछा मन री बात ।
उगता हुसी गांव मँ अब भी दिन अर रात ॥
जमती हुसी मैफलाँ मद छकिया भोपाळ ।
देता हुसी आपजी अब पी कै गाळ ॥
देता हुसी आपजी अब पी कै गाळ ॥
दारू पीवै आपजी टूट्यो पड्यो गिलास ।
पी कै बोलै फारसी पड्या न एक किलास ॥
साँझ ढल्याँ नित गाँव री भर ज्याती चौपाळ ।
चिलमा धूँवा चालती बाताँ आळ पताळ ॥
चिलमा धूँवा चालती बाताँ आळ पताळ ॥
पाती लेज्या डाकिया जा मरवण रै देश ।
प्रीत बिना जिणो किसो कैजे ओ सन्देश ॥
काळी कोसा आंतरै परदेशी री प्रीत ।
पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत ॥
पूग सकै तो पूग तूँ नेह बिजोगी गीत ॥
मरवण गावै पीपली तेजो गावै लोग ।
मै बैठयो परदेश मँ भोगू रोग बिजोग ।।
सावण आयो सायनी खेता नाचै मोर ।
म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥
म्हारै नैणा रात दिन गळ गळ जावै मोर ॥
*चिथ्योडी- दबी कुचली * रळ – मिलना *धुक सक्यो -मनाया जा सका
*मैफलाँ – महफिल,पार्टी *आपजी – पिताजी *सीर- हिस्सा *आळ
पताळ जिसका कोई ओर छोर नही हो (अनंत) *पाती – पत्र *मरवण – राजस्थान की एतिहासिक नायिका ( प्रेमिका)
*काळी कोसा – बहुत ज्यदा दूर *पूग – पहूंच *सायनी – समान उम्र ( नायिका)