Followers

Tuesday, September 11, 2012

बेटी का बाप

कुछ उदगार जो अंतर्जाल की दुनिया में घूमते हुए मिले और अपने से लगे सोचा आज आपसे भी शेयर कर लू ।
अगर कागज होता तो उस पर गिरा आँख का पानी आपको जरूर दिख जाता ....





क्या लिखू  ...?
की वो परीयो का रूप होती है ,
या कडकती ठण्ड में सुहानी धुप होती है 
वो होती है उदासी के हर  मर्ज की दवा की तरह 
या ओस में शीतल हवा की तरह 
वो आंगल में फैला उजाला है 
या मेरे गुस्से पे लगा ताला है 
वो पहाड़ की चोटी पे सूरज की किरण है 
या जिन्दगी जीने का सही आचरण है 
है वो ताकत जो छोटे से घर को महल बना दे 
है वो काफिया जो किसी को मुक्कमल कर दे 
क्या लिखू ??
वो अक्षर जो न हो तो वर्णमाला अधूरी है ..
वो, जो सबसे ज्यादा जरूरी है ..
ये नहीं कहूँगा की वो हर वक्त साथ साथ होती है 
बेटिया तो सिर्फ एक एहसास होती है 
उसकी आँखे ,न मुझसे गुडिया मांगती है न खिलौने 
कब आओगे ,बस एक छोटा सा सवाल सुनो ना 
अपनी मजबूरी को छुपाते हुए देता हूँ मै जवाब 
तारिख बताओ ,टाईम बताओ ,अपनी उंगलियों पे करने लगती है वो हिसाब 
और जब मै नहीं दे पाता हूँ सही सही जवाब अपने आंसुओ को छुपाने के लिए चेहरे पे रख लेती है किताब 
वो मुझसे आस्ट्रेलिया में छुट्टिया ,मर्सीडीज की सैर फाईव स्तर में डिन्नर या महंगे आई पोड नहीं मांगती 
न वो धीरे से पैसे पिगी बैंक में उंडेलना चाहती है 
वो तो बस कुछ देर मेरे साथ खेलना चाहती है 
और मै कहता हूँ ये ,की बेटा बहुत काम है ...नहीं करूंगा तो कैसे चलेगा ...
मजबूरी भरे दुनियादारी के जवाब देने लगता हूँ ,
और वो झूठा ही सही मुझे एहसास दिलाती है ..
की जैसे सब कुछ समझ गयी हो ...
लेकिन आंखे बंद करके रोती है ...
जैसे सपने में खेलते हुए मेरे साथ सोती है ...
जिन्दगी न जाने क्यों इतनी उलझ जाती है ..
और हम समझ ते है ,बेटिया सब समझ जाती है