नीचे लिखे हुये दोहे राजस्थानी भाषा मे हैँ नीचे अंत मे कुछ कठिन शब्दों के
हिन्दी अर्थ भी दिये है फिर भी किसी पाठक को समझ मे नही आये तो वो
टिप्पणी के रूप मे या मेल द्वारा पूछ सकते है ।
हिन्दी अर्थ भी दिये है फिर भी किसी पाठक को समझ मे नही आये तो वो
टिप्पणी के रूप मे या मेल द्वारा पूछ सकते है ।
कीडी नगरो सहर है मोटर बंगला कार ।
जठै जमारो बेच कै मिनख करै रूजगार ॥
अजब रीत परदेस री एक सांच सौ झूँठ ।
हँस बतळावै सामनै घात करै पर पूठ ॥
खेत खळा अर रूंखडा बै धोरा बै ऊंट ।
बाँ खातर परदेस के तज देवूँ बैकूँट ॥
देह मशीना मै गळै आयो मौसम जेठ ।
बिरथा खोयी जूण म्हे परदेसा मँ बैठ ।।
ऊमस महीना जेठ रो बो पीपळ रो गांव ।
संगळियाँ संग खेलता चोपङ ठंडी छाव ॥
गाता गीत न गा सक्या करता करया न कार ।
जीतै जी ना जी सक्या मरिया पडसी पार ॥
ठीडै ठाकर ठेस रा ठीडै ही ठुकरेस ।
बिना ठौड अर ठाईचै क्यूँ भटकै परदेस ॥
समरथ जाणु लेखणी सांचो जाणू रोग ।
गावैला जद चाव सूँ दरद दिसावर लोग ।।
सूना सा दिन रात है सूनी सूनी सांझ ।
बंस बध्यो है पीर रो खुशिया रै गी बांझ ।।
हिरण्याँ हर ले नीन्द नै किरत्याँ कैदे बात ।
तारा गिणता काटदे नित परदेसी रात ॥
रिमझिम बरसै भादवो झरणा री झणकार ।
परदेसी रै आन्गणै रूत लागी बेकार ॥
साखीणो संसार है कद तक राखा साख ।
साख राखताँ गांव मँ मिटगी खुद री साख ॥
तन री मौज मजूर हा मन री मौज फकीर ।
दोनूँ बाताँ रो कठै परदेसाँ मँ सीर ॥
ऊंचा ऊंचा माळिया ऊची ऊंची छांव ।
महला सूँ चोखो सदा झूंपडियाँ रो गांव ॥
बाट जोंवता जोंवता मन हुग्यो बैसाख ।
छोड प्रीत री आस नै प्रीत रमाली राख ॥
जद सूँ छोड्यो गांव नै हिवडै पडी कुबाण ।
गीत प्रीत री याद मँ आवै नित मौकाण ॥
प्रीत आपरी सायनी होगी म्हारै गैल ।
भारी पडज्या गांव नै जिया कंगलौ छैल॥
प्रीत करी नादान सूँ हुयो घणो नुकसान ।
आप डूबतो पांडियो ले डूब्यो जुजमान ॥
हेत कामयो देश मँ परदेसा मँ दाम ।
किण री पूजा मै करू गूगो बडो क राम ॥
बाबो मरगो काळ मै करग्यो बारा बाट ।
घर मँ टाबर मौकळा कै करजै रो ठाठ ॥
मारै आह गरीब री करदे मटिया मेट ।
पण कंजूसी सेठ रो रति ना सूकै पेट ॥
किण नै देवाँ ओळमाँ किण नै कैँवा बात ।
टाबरियाँ रै पेट पर राम मार दी लात ॥
कठिन राजस्थानी शब्दो के हिन्दी अर्थ :-
जठै - जहां ,
पर पूठ = पीछे से ,
रूंखडा = पेड़ ,
खळा = खलिहान ,
धोरा = टीला ,
बां खातर = उसके लिये,
तज =त्याग ,
बिरथा = व्यर्थ ,
जूण = योनी,
चौपड़= चौसर ( एक प्रकार का खेल ) ,
ठीडै = जगह ,
ठुकरेश = राजपूती हेकडी ,
ठोड अर ठांयचै = जगह ठिकाना ,
हिरण्यां और कीरत्यां = एक प्रकार के तारे जो रात्री में समय देखने के काम आते है ,
पाण्डियो =पंडित ,
जजमान = यजमान
थोड़ा-थोड़ा समझा और फिर नीचे अर्थ मिल गये तो और भी अच्छा ल्गा। सुन्दर रचना!
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ॐ (ब्रह्मनाद) का महत्व
बहुत बढ़िया | शाम को फुरसत में पढेंगे |
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे हैं। सब में जन अनुभव झलकता है।
ReplyDeleteवाह जी, ये तो सहेजने लायक हैं. इसके लिये आपको बहुत २ धन्यवाद.
ReplyDeleteरामराम.
वाकई, सीख देते दोहे. ताऊ सही फरमा गये-सहेजने लायक!! आभार आपका.
ReplyDeleteदोहा सुन्दर है, राजस्थानी शब्दों का ठीक-ठीक अर्थ नहीं मालूम पर आपने शब्दों का अर्थ बता कर ये परेशानी पूरी कर दी |
ReplyDeleteलगे रहिये |
कीडी नगरो सहर है मोटर बंगला कार ।
ReplyDeleteजठै जमारो बेच कै मिनख करै रूजगार ॥
अजब रीत परदेस री एक सांच सौ झूँठ ।
हँस बतळावै सामनै घात करै पर पूठ ॥
सबके सब अति सुन्दर एवं अनुभवपरक दोहे हैं।बहुत कुछ सोचने को विवश करते!!!!
Behad achha laga ye padhna..'gurilo pallu latke..' yaad aa gaya...!"Jaroso tedho ho ja balma..' aisa hee tha na?Yaa phir 'mharo ghorband nakhralu..'
ReplyDeleteNai chhej seekhne ka maja hi alag hai..abhar.
ReplyDeletelajwab Prastuti ke liye badhai.Kabhi Dakiya babu ke yahan bhi tashrif laiye na !!
LOk ras ki bat hi nirali hai.
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. "शब्द सृजन की ओर" पर इस बार-"समग्र रूप में देखें स्वाधीनता को"
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
ReplyDeleteरचना गौड़ ‘भारती’
प्रीत आपरी सायनी होगी म्हारै गैल ।
ReplyDeleteभारी पडज्या गांव नै जिया कंगलौ छैल॥
बहुत सुन्दर लगा आपका प्रयास ... साधुवाद ... कृपया मुझे इस छंद का पूरा आशय समझावें - घाना मान आपका - नरेन्द्र
वाकई, सीख देते दोहे. ताऊ सही फरमा गये-सहेजने लायक!
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