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Tuesday, July 7, 2009

दरद दिसावर भाग -2 ( dard disawar part 2)wrote by shri bhagirath singh bhagya

पिछली पोस्ट में श्री रतन सिंह जी ने व अन्य ब्लोगर मित्रो ने आग्रह किया की दरद दिसावर के औ भी कुछ दोहे पढ़वाए मै ने भी सोचा की पूरी किताब को ही डाल दिया जाए | पेश है आपकी नजर दरद दिसावर के दोहे | नीचे लिखे हुये दोहे राजस्थानी भाषा मे हैँ नीचे अंत मे कुछ कठिन शब्दों के हिन्दी अर्थ भी दिये है फिर भी किसी पठक को समझ मे नही आये तो वो टिप्पणी के रूप मे या मेल द्वारा पूछ सकते है ।



जद तू मिलसी बेलिया करस्यूँ मन री बात

बध बध देस्यू ओळमा भर भर रोस्यूँ बाँथ


पैली तारिख लागताँ जागै घर ओ भाग ।

मनियाडर री बाट मँ बाप उडावै काग


फागण राच्यो फोगला रागाँ रची धमाल ।

चाल सपन तूँ गाँव री गळीयाँ मँ ले चाल ॥


घर, गळियारा, सायना, सेजाँ सुख री छाँव् ।

दो रोट्या रै कारणै पेट छुडावै गाँव ॥


चैत चुरावै चित्त नै चित्त आयो चित्तचोर ।

गौर बणाती गौरडी खुद बणगी गणगौर


चपडासी है सा’ब रो बूढो ठेरो बाप ।

बडै घराणै भोगरयो गेल जनम रा पाप॥


बेली तरसै गांव मँ मन मँ तरसै हेत ।

घिर घिर तरसै एकली सेजाँ मँ परणेत


भाँत भाँत री बात है बात बात दुभाँत ।

परदेशाँ रा लोगडा ज्यूँ हाथी रा दांत


गळै मशीनाँ मँ सदा गांवा री सै मौज ।

परदेसाँ मै गांगलो घर रो राजा भोज


बैठ भलाईँ डागळै मत कर कागा कांव ।

चित चैते अर नैण मँ गूमण लागै गांव ।।


बडा बडेरा कैंवता पंडित और पिरोत।

बडै भाग और पुन्न सूँ मिलै गांव री मौत ।|


लोग चौकसी राखता खुद बांका सिरदार ।

बांकडला परदेस मँ बणग्या चौकीदार


मरती बेळ्या आदमी रटै राम र्रो नांव ।

म्हारी सांसा साथ ही चित्त सू जासी गांव


मै परदेशी दरद हूँ तू गांवा री मौज ।

मै हू सूरज जेठ रो तूँ धरती आसोज॥


बेमाता रा आंकङा मेट्या मिटे नै एक ।

गूंगै री ज्यू गांव रा दिन भर सुपना देख


दादोसा पुचकारता दादा करता लाड ।

पीसाँ खातर आपजी दियो दिसावर काढ ।।


मायड रोयी रात भर रह्यो खांसतो बाप ।

जिण घर रो बारणो मै छोड्यो चुपचाप


जद सूँ परदेसी हुयो भूल्यो सगळा काम ।

गांवा रो हंस बोलणौ कीया भूलू राम ॥


गरजै बरसै गांव मै चौमासै रो मेह ।

सेजा बरसै सायनी परदेसी रो नेह ॥



कुण चुपकै सी कान मै कग्यो मन री बात ।

रात हमेशा आवती रात नै आयी रात



आंगण मांड्या मांडणा कंवलै मांड्या गीत ।

मन री मैडी मांडदी मरवण थारी प्रीत ॥


दोरा सोराँ दिन ढल्यो जपताँ थारो नाम ।

च्यार पहर री रात कीयाँ ढळसी राम


सांपा री गत जी उठी पुरवाई मँ याद ।

प्रीत पुराणै दरद रै घांवा पडी मवाद


नैण बिछायाँ मारगाँ मन रा खोल कपाट ।

चढ चौबारै सायनी जोती हुसी बाट


प्रीत करी गैला हुया लाजाँ तोङी पाळ ।

दिन भर चुगिया चिरडा रात्यु काढी गाळ


पाती लिखदे डाकिया लिखदे सात सलाम ।

उपर लिख दे पीव रो नीचै म्हारो नांम


दीप जळास्यु हेत रा दीवाळी रो नाम ।

इण कातिक तो घराँ ! परदेसी राम


जोबण घेर घुमेर है निरखै सारो गांव ।

म्हारै होठाँ आयग्यो परदेसी रो नांव


जीव जळावै डाकियो बांटै घर घर डाक ।

म्हारै घर रै आंगणै कदै देख झांक


मैडी उभी कामणी कामणगारो फाग ।

उडतो सो मन प्रीत रो रोज उडावै काग ॥


बागाँ कोयल गांवती खेता गाता मोर ।

जब अम्बर मँ बादळी घिरता लोराँ लोर


बाबल रै घर खेलती दरद न जाण्यो कोय ।

साजन थारै आंगणै उमर बिताई रोय ॥


बाबल सूंपी गाय ज्यूँ परदेसी रै लार ।

मार एक बर ज्यान सूँ तडपाके मत मार ॥


नणद,जिठाणी,जेठसा दयोराणी अर सास ।

सगलाँ रै रैताँ थका थाँ बिन घणी उदास


सुस्ताले मन पावणा गांव प्रीत री पाळ ।

मिनख पणै रै नांव पर सहर सूगली गाळ


सहर डूंगरी दूर री दीखै घणी सरूप ।

सहर बस्याँ बेरो पडै किण रो कैडो रूप


खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।

बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम ||


कठिन राजस्थानी शब्दो के हिन्दी अर्थ

* बेलिया -साथी, * बध बध - आगे आकर , * ओळमा - उलाहना,

*बाँथ- आलिंगन , *पैली - एक , *सायना -हम उमर , *सेज़ाँ - शयन करने की जगह

*गौरडी - गणगौर जैसी नायिका , * गेल -पिछला , *परणेत - पत्नी ,

*बेली- साथी , *लोगडा - आम आदमी , *घूमन - फिरना ,

*बेलिया- साथिया , *पीसां - पैसे , *सगळा -सभी ,

*कग्यो - कह गया , *मांड्या - लिखना , *कंवळै - दीवार पर ,

*मैडी - ऊंचा स्थान , *दोरा सोरा - जैसे तैसे किसी कार्य को करना ,

*गैला - पागल, *लाजां - लज्जा , *चीरडा - चिथड़े , * रात्यूं - रात भर ,

*फाग - एक प्रकार की ओढ़नी जो फाल्गुन में राजस्थानी औरते पहनती है ,

*सून्पी- सौंप दिया , * र्रैँतां थका , होने के बावजूद,

*सूगली - गंदी , *डूंगरी - पहाडी ,

*कैडो - कैसा , *जिण रो - जिस का


11 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति


    ---
    चाँद, बादल और शाम

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  2. खाणो पीणो बैठणो घडी नही बिसराम ।
    बो जावै परदेस मँ जिण रो रूसै राम ||

    सभी दोहे एक से बढ कर एक, बहुत सुंदर
    लेकिन यह दोहा कुछ ऎसा लगता है जेसे अपना सा हो
    धन्यवाद

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  3. बहुत खूब.. दरद दिसावर के दोहों को पढ़कर बहुत आनंद आया.. राजस्थानी भाषा का मान इंटरनेट पर बढ़ाने के सफल प्रयास के लिए आपका आभार

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  4. सुन्दर अति सुन्दर ! सभी दोहे एक से एक धन्यवाद .

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  5. वाह वाह..बहुत धन्यवाद आपको इस प्रयास के लिये और ईश्वर आपको इस कार्य मे सफ़लता दे. यही शुभकामना है.

    रामराम.

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  6. घर, गळियारा, सायना, सेजाँ सुख री छाँव् ।

    दो रोट्या रै कारणै पेट छुडावै गाँव ॥

    वाह्! कितनी सही बात कही है। सभी दोहे एक से बढकर एक.....

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  7. एक से बढ़कर एक दोहे |

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  8. नरेश जी पगेलागणां
    थारों आज रो करियोड़ो काम आज तो मोकळो आनन्‍द दे ही रयो है आण वाळै दिनां में मायड़ रा और भी शौकीन लोग आसी तो बै देखर आनन्दित और हुसी।

    थानें घणो घणो आभार।

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  9. आत्म विश्वास से भरपूर एक अच्छा आलेख।
    एक से बढ़कर एक दोहे |
    आपकी साधना पूरी हो- शुभकामनाएं॥

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  10. नरेश जी ये दोहे तो मन को इतना छू गए कि इन्हें बार बार पढने का मन करता है| कितनी बार भी पढ़लो मन ही नहीं भरता | कुछ दोहे तो दोस्तों को सुनाने के लिए याद भी कर लिए है |
    वैसे श्रधेय सोभाग्य सिंह जी सही कहते है कि गद्य मर सकता है काव्य नहीं | काव्य हमेशा जीवित रहता है | और जो रस काव्य में पढने और सुनने में मिलता है वो गद्य में कहाँ |

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  11. https://www.youtube.com/watch?v=oywfb6RihKk

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