आज कुछ लिखने का मन नहीं था केवल पढ़ ही रहा था | आजकल वैसे भी लिखने का मन नहीं करता है | कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण कुछ व्यस्तता के कारण लिखने का काम नहीं हो पा रहा है | वैसे भी हम कौन से कवी है या साहित्यकार है अगर होते भी तो कौन सा तीर मार लेते पड़े रहते किसी अखबार के दफ्तर के किसी कोने में ||
अब आप ये चित्र देखिये यह मैंने अभी एक मिनट पहले लिए है | मेरी दूकान में बैठे बैठे मुझे जो प्रकृति का नजारा दिखा वही मै आपको दिखा रहा हूँ | चित्र नोकिया २७३० क्लासिक २ मेगा पिक्सल से लिए गए है |चित्र को बड़ा देखने के लिए उस पर क्लीक करे |
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चित्र नम्बर १ |
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चित्र नंबर २ |
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चित्र नंबर ३ |
बहुत सुंदर चित्र है, ओर आसमान बिलकुल साफ़ है, बरसो बाद मैने भारत मै इतना साफ़ आसमान देखा है, दिल्ली ओर हरियाणा मै तो आसमान पर धुआ ही धुआ ओर धुल ही धुल दिखती है, अब आप की दुकान का पता चल गया टाफ़ी ओर चाकलेट तो हमे फ़्रि मै मिलेगी ना
ReplyDeleteवाह क्या बात हे. बादलों की हा तरह आप भी छा गए .
ReplyDeleteमौसम के पूरे मजे ले रहे है आजकल :)
ReplyDeleteहमे शहरों मे एसा नजारा देखने को कहां मिलता है जी !
bahut sundar chitra
ReplyDeleteबादल बरसे भी कि सुन्दर सी फोटो खिंचा के चल दिये ।
ReplyDeletesundar chitr hain , koee bhi kuchh achchha likhta hai to vo doosron ke sath sath apna kitna bhala karta hai ,ye to likhne vala hi jaanta hai . isliye uthhiye kalam uthhaiye ...
ReplyDeleteसुंदर चित्र हैं,
ReplyDeleteसारे दुकान में बैठे बैठे लिए हैं लगता है।
आभार
चित्र तो वाकई बहुत साफ एवं सुन्दर आए...अगर कहीं बीच में बिजली की तारें न होती तो ओर भी बढिया लगते...लेकिन ये तो बताईये कि दुकान पर काँच के इन मर्तबानों में क्या रखा है :)
ReplyDeleteक्या बात है बादलों को भी बाध दिया आपने........
ReplyDeletedrdhabhai.blogspot.com
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