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Thursday, April 28, 2011

आइये फ्री में कॉल करे (खाड़ी देशो में भी )

जी हां ये सच है,अब आप किसी भी देश में फ्री कॉल कर सकते है| यंहा तक की खाड़ी देशो में भी जंहा हमारे बहुत से भारतीय भाई बंधू रहते है | कनाडा और अमरीका में फ्री बात करना तो मैंने पहले भी बताया है | लेकिन ये वेब साईट हमें सभी देशो में कॉल करने की सुविधा देती है | ये सुविधा केवल एक मिनट रहती है लेकिन आप अपने काम की बाते तो एक मिनट में भी कर सकते है ,नहीं तो दुबारा नंबर मिलाए |चाहे जितनी बार कॉल करे क्यों की इसमें बात करना एक दम बच्चो का खेल है कोइ पजीकरण भी नहीं करना पडता है |
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इसमें दिए गए बोक्स में अपने नंबर भरे और दुसरे बोक्स में जिस देश में कॉल करनी है उसका नाम चुन कर वंहा का नम्बर भर दीजिए और सबमिट के टेब पर क्लीक कीजिए | इसके बाद आपको तुरंत नीचे वाले बोक्स में एक लोकल नम्बर शो होगा उस नंबर पर आप अपने मोबाईल से मिस्ड कॉल करे तब तुरंत आपके पास जवाब में उसी नंबर से इनकमिंग कॉल आयेगी और आपका सम्बन्ध आपके दोस्त के फोन से हो जायेगा |
इसके फायदे
  • सबसे बड़ा फायदा ये है की आपको किसी भी हेडफोन और माइक की जरूरत नहीं पडती है बात आपके मोबाईल से होती है इसलिए आवाज की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है |
  • आप एक दिन में चाहे जितनी कॉल कर सकते है | 
  • आपके फोन नंबर भी छुपे हुए रहते है | आपके साथी के फोन की कॉलर आई डी में मशीन द्वारा दीये गए नम्बर दिखाई देते है यानी आप गुप्त कॉल कर सकते है |
  • सबसे बड़ी बात की ये फ्री है |
इसकी कमिया
  • कमि केवल एक है इसमें समय अभी एक मिनट का ही मिल रहा है ,(फ़ोकट में मिल रहा है इसलिए इसे नजरअंदाज किया जा सकता है | ) 

Sunday, April 24, 2011

चर्चा दो ब्लॉगों की

     आज मै आपको दो स्थानीय ब्लॉगों के बारे में बताने जा रहा हूँ | जिसमे से पहला ब्लॉग है माऊ -बाबो और दूसरा है  आवाज अपनी |

     दोनों ब्लॉगों में जो समानता है वो ये है की ये दोनों ही नयी पीढ़ी के ब्लॉगर है जो अभी अध्ययन कर रहे है | दोनों ही राजस्थान के है | दोनों ही कुंवारे है और दोनों में ही कुछ खासियत है जो मै आपके सामने ला रहा हूँ | मै नहीं चाहता की ये ब्लॉग प्रोत्साहन के अभाव में गुम हो जाए |

     माऊ बाबो ब्लॉग के ब्लॉगर है अंगद बारुपाल जी ,ये हनुमान गढ़ के गाँव रोंरावाली के रहने वाले है | अभी कोलेज में पढते है | मै यूही विचरण करते हुए इनके ब्लॉग पर पहुचा | इनके ब्लॉग पर चार पोस्ट अब तक लिखी गयी है | जिसमे इनकी सृजनशीलता की झलक मिलती है | राजस्थानी भाषा में लिखी गयी लघु पोस्ट और चित्रों का सुंदर उपयोग इनके लेखन को बहुत प्रभावशाली बनाता है | जो भी लिखा है उसमे लीक से हट कर लिखा है | मै तो इस ब्लॉग से बहुत प्रभावित हुआ हूँ | अगर आप भी राजस्थानी भाषा की थोड़ी बहुत समझ रखते है तो इस ब्लॉग से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते है |

     दूसरा ब्लॉग है आवाज अपनी जिसके ब्लॉगर है तरुण भारतीय | इन से मै आमने सामने भी मिल चुका हूँ ये हमारे गृह जिला झुंझुनू के गाँव गोविन्द पुरा के रहने वाले है | अभी इस वर्ष बी एड कर रहे है | समय समय पर इनकी वार्ता चुरू और जयपुर आकाशवाणी केन्द्र से प्रसारित होती है | इतनी कम उमर में लेखन के प्रती इन का  जज्बा काबिले तारीफ़ है | ये पतंजली योगपीठ की झुंझुनू इकाई में पदाधिकारी भी है | लोगो को योग सिखाते है |

    दोनों ब्लॉगर ऊर्जा से भरे हुए है मै इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ |

Monday, April 18, 2011

बाजरे की खीचड़ी .... मिक्सर ग्राइंडर

      आज भाटिया जी की ये पोस्ट पढ़कर मुझे अहसास हुआ की हमारे भाई जो विदेशो में रहते है उन्हें देशी खाने के लिए कितना परेशान होना पड़ता है | विदेश में रहने वालो की तो छोडिये आजकल जो शहरो में रह रहे है उन्हें भी बहुत परेशान होना पड़ता है | मजे है तो गाँव वालो के जो की आराम से देशी खाना खा सकते है |

      देशी खाने में हमारे राजस्थान के बाजरे के बने खाने का जवाब कही नहीं है | बाजरे की राबडी ,बाजरे की रोटी और बाजरे की खीचड़ी इनका कोइ मुकाबला नहीं है | जिसने भी इन्हें खाया है वो ही इसका स्वाद बता सकता है | बाजरे की खीचड़ी बनाने में एक सबसे बड़ी समस्या आती है बाजरे को कूटने की ये कुटाई का जो तरीका है वो थोड़ा अलग प्रकार का होता है इस प्रक्रिया में बाजरे के ऊपर का छिलका उतार लिया जाता है |  इस कुटाई हेतु साधन काम में लिए जाते है एक ओंखली या इमाम दस्ता(लोहे की खरल )| ये दोनों साधन प्राय शहरी लोगो के पास नहीं होते है और विदेश में रहने वालो के पास तो बिलकुल ही नहीं हो सकते है |

     लेकिन इस समस्या का हल मुझे जो सूझा वो मै आपको बताता हूँ | हो सकता है आपका भी कभी मन करे तो आप भी मिक्सर की सहायता से बना सकते है जो की वर्तमान समय में हर रसोई की आवश्यक वस्तु बन गया है | आपको मिक्सर में ब्लेड वो लगाना है जो आप लस्सी बनाने या फेटने के लिए काम में लेते है | उसमे फायदा ये है की बाजरे के टूकडे नहीं होंगे केवल उसके ऊपर का छिलका ही निकलेगा | और आपको यही करना है | आप बाजरे में थोड़ा पानी डाले और मिक्सर को एक बार कम गती से तथा बाद में तेज गती से घुमाए  | पानी की मात्रा अगर आपने सही डाली है तो मानिए की आपका काम बन गया है अब आप बाजरे में से उसके छिलके जो की अब डस्ट बन गए है ,को अलग करना है  | ये डस्ट अलग करना औरतो को अच्छी तरह से आता है इस कार्य में प्राय मर्द लोग फ़ैल हो जाते है |

      उसके बाद इस साफ़ किये गए बाजरे को जिसमे की लगभग ८० प्रतिशत आटा बन जाता है बाकी २० प्रतिशत दाने के रूप में रहता है | इस मिश्रण में ३० प्रतिशत के हिसाब से मूंग की छिलके वाली दाल डाल देंगे | बाद में इस में आप आवश्यकता अनुसार नमक और पानी मिलायेंगे जिस प्रकार आप दलिया बनाते है उसी प्रकार इसे भी बना लेंगे | आपको दलिया बनाने का तरीका समझाने की जरूरत शायद नहीं होगी | यदि आपको दलिया बनाना भी नहीं आता है तो आप इससे बनाने की चेष्टा नहीं करे | इसे आप देशी खांड और घी डाल कर खा सकते है |
अब एक चित्र जो खिचडी बनते समय मैंने अपनी रसोई में मोबाईल द्वारा लिया था |
खिचड़ी का लाइव चित्र 

  

Thursday, April 14, 2011

रामचंद्र पाकिस्तानी ...... डीडी भारती चैनल ......17 अप्रैल शाम 8 बजे

राम चन्द्र पाकिस्तानी नामक फिल्म २०१० में बनी थी | इसकी निर्देशक नंदिता दास है | यह फिल्म पाकिस्तान से भूलवश सीमा पार आने वाले बाप बेटे की कहानी है |  इस फिल्म का संगीत बहुत कर्ण प्रिय और दिल को सुकून देने वाला है |

डीडी भारती चैनल पर इसका प्रसारण १७ अप्रेल शाम आठ बजे होगा | आप अगर इस फिल्म को देखने से पहले इस फिल्म के बारे में जानना चाहते है तो आप इस फिल्म की वेबसाइट पर जा कर देख सकते है |
इस फिल्म के गाने भी मधुरता लिए है अगर आप इस फिल्म के गाने सुनना चाहते है तो इस लिंक पर जाकर ऑनलाइन भी सुन सकते है |
Download Ram Chand Pakistani Mp3 Songs  

Saturday, April 9, 2011

अपनी मेल में स्पैम से छुटकारा ..........जीमेल चैट विंडो में फोन का ऑप्सन

मेरी पिछली दो पोस्ट को पढ़ने के बाद मेरे पास काफी लोगो के फोन और मेल आये सभी अपनी शंका का समाधान जानना चाहते है |
        पहला प्रश्न ये की जी मेल खाते को स्पैम मुक्त कैसे करे ?
     आइये पहले ये जान ले की स्पैम क्या है | आपके मेल खाते में जो स्पैम होते है वो एक प्रकार का निर्देशित कमांड होता है ये आपके कंप्यूटर में किसी प्रकार की गडबड नहीं करता है लेकिन आपके जितने भी जान पहचान वाले जिनकी इमेल आई डी होते है उन्हें आपकी जानकारी के बिना ही अपनी विज्ञापन वाली मेल भेजता है जिनमे कुछ अश्लीलता भी हो सकती है | इस प्रकार की मेल आपको शर्मिंदा भी कर सकती है | कुछ मेल तो इस प्रकार की भी भेजी जाती है जिनका कोइ अर्थ ही नहीं निकलता है | और आजकल तो हिन्दी में भी आने लग गयी है पहले तो इस प्रकार की मेल विदेशी कंपनी के द्वारा  अंग्रेजी भाषा में हीआती थी किन्तु अब ये मेल हिन्दी में भी आने लग गयी है |
        इससे बचने के लिए आपको क्या करना चाहिए? ...................    सबसे पहले आप के पास अपने दोस्तों के जितने भी मेल पते है | उन्हें अपनी हार्डडिस्क में एक्पोर्ट कर सेव कर ले | जो फाईल बनेगी वो माईक्रोसोफ्ट एक्सल में खुलने योग्य बनेगी |दूसरा काम फिर ये करे की आप के दोस्तों के ई मेल पते अपने कोंटेक्ट लिस्ट में से डिलीट कर दे | जब भी आपको अपने दोस्तों को मेल भेजना हो तो उनका मेल पता आपको अपनी हार्ड डिस्क में सेव की गयी फाईल में से लेकर काम में लेवे | आपने कोंटेक्ट लिस्ट की समय समय पर जांच करके उसको डिलीट करते रहे | जब आपके ई मेल खाते में कोंटेक्ट लिस्ट ही नहीं बनेगी तो उनके यंहा आपके खाते से स्पैम मेल जाने की संभावना भी खतम हो जायेगी  |

       अब बात करते है जी मेल के चैट विंडो में फोन ऑप्सन के चालू करने की काफी लोग इस बारे में जानना चाहते थे | उसके लिए आपको ज्यादा तकनीक लगाने की जरूरत नहीं है | आपको एक सोफ्टवेयर डाऊनलोड करना है जिसका नाम ultra surf  है ये सोफ्टवेयर पोर्टेबल है मतलब की इंस्टाल करने का झंझट नहीं है | केवल रन करना पड़ता है | आप इस लिंक पर जाकर इसे डाउनलोड कर सकते है | जब आप इसे रन करते है तो आपके मोनिटर स्क्रीन के दाहिनी तरफ नीचे घड़ी के पास में एक ताले का आईकन बन जाता है | यह ताला आपके छुपे होने का संकेत है | और यह अमेरिका के सर्वर को काम में ले रहा है | अब आप अपने जी मेल को खोलिए और अपने चैट विंडो में अपने स्टेट्स को देखिये वंहा आपका फोन ऑप्सन चालू दिखेगा |

Thursday, April 7, 2011

गणगौर की विदाई (सचित्र झांकी )

हमारे कस्बे में सैकड़ो साल पुरानी परम्परा को कायम रखते हुए इस बार भी राठौड़ और शेखावत दोनों समाज ने अपनी अपनी गणगौर की सवारी निकाली | यह सवारी उनकी कोटड़ी (मोहल्ला) से शुरू होकर मुख्य मार्ग से होकर तालाब तक गयी वंहा औरतो ने अपनी पूजा अर्चना की तालाब पर पानी पिलाया गया और वापस कोटड़ी में लाकर रख दिया गया |
गणगौर माता पर जानकारी भरी पिछली पोस्ट में आपको कोइ चित्र नहीं दिखा पाया अब आप मेरे मोलिक चित्र इस पोस्ट में देख सकते है | चित्रों को बड़ा देखने हेतु उन पर डबल क्लिक करे |

ईसर जी और गणगौर माता की सवारी मेडतिया कोटड़ी से निकलते हुए


तालाब पर गणगौर माता के साथ महिलाए परिक्रमा करते हुए 

मेले में सजी धजी खिलौनों की दूकान

मेले का दृश्य

मेले में चाट वाले

तालाब पर ईसर जी और गौरा माता, विश्राम स्थल 

मेडतिया सरदार फोटोग्राफी करवाते हुए

Tuesday, April 5, 2011

वातावरण में गूंज रहे है गणगौर माता के गीत

इस पोस्ट से पहले भी मैंने इस पर्व पर एक पोस्ट लिखी थी | आजकल हमारे यंहा गाँव गली में गणगौर माता का पूजन पर्व चल रहा है | मैंने भी विचार किया की आपको इस पर्व के बारे में और ज्यादा जानकारी दे दू |
      गणगौर का यह त्योहार चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से जो नवविवाहिताएँ प्रतिदिन गणगौर पूजती हैं, वे चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गणगौरों को पानी पिलाती हैं और दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती हैं। यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न कराने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखंड रहता है।
       नवरात्र के तीसरे दिन यानि कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को गणगौर माता (माँ पार्वती) की पूजा की जाती है। पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईशर जी की पूजा की जाती है। प्राचीन समय में पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए व्रत और तपस्या की। शंकर भगवान तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान माँगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा की। पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गयी। तभी से कुंवारी लड़कियां इच्छित वर पाने के लिए ईशर और गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है। गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती है। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती है। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है।
      आठवें दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल आते हैं। उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती हैं और वहाँ से मिट्टी के बरतन और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है। उस मिट्टी से ईशर जी, गणगौर माता, मालिन आदि की छोटी छोटी मूर्तियाँ बनाती हैं। जहाँ पूजा की जाती है उस स्थान को गणगौर का पीहर और जहाँ विसर्जन किया जाता है वह स्थान ससुराल माना जाता है।
       राजस्थान का तो यह अत्यंत विशिष्ट त्योहार है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वती को तथा पार्वती ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। गणगौर माता की पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है। राजस्थान से लगे ब्रज के सीमावर्ती स्थानों पर भी यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। चैत्र मास की तीज को गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है। दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है, यानि कि विसर्जित किया जाता है। विसर्जन का स्थान गाँव का कुँआ या तालाब होता है। कुछ स्त्रियाँ जो विवाहित होती हैं वो यदि इस व्रत की पालना करने से निवृति चाहती हैं वो इसका अजूणा करती है (उद्यापन करती हैं) जिसमें सोलह सुहागन स्त्रियों को समस्त सोलह श्रृंगार की वस्तुएं देकर भोजन करवाती हैं |
इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। सुहागिनें व्रत धारण से पहले रेणुका (मिट्टी) की गौरी की स्थापना करती है एवं उनका पूजन किया जाता है। इसके पश्चात गौरी जी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरी जी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से स्त्रियाँ अपनी माँग भरती हैं। इसके पश्चात केवल एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है।
     गनगौर पर विशेष रूप से मैदा के गुने बनाए जाते हैं। लड़की की शादी के बाद लड़की पहली बार गनगौर अपने मायके में मनाती है और इन गुनों तथा सास के कपड़ो का बायना निकालकर ससुराल में भेजती है। यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गनगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है। ससुराल में ही वह गणगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिण दी जाती है।
गणगौर  माता की कथा
भगवान शंकर तथा पार्वती जी नारद जी के साथ भ्रमण को निकले। चलते-चलते वे चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन एक गाँव में पहुँच गए। उनके आगमन का समाचार सुनकर गाँव की श्रेष्ठ कुलीन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने लगीं। भोजन बनाते-बनाते उन्हें काफ़ी विलंब हो गया किंतु साधारण कुल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ कुल की स्त्रियों से पहले ही थालियों में हल्दी तथा अक्षत लेकर पूजन हेतु पहुँच गईं। पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को स्वीकार करके सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया।
वे अटल सुहाग प्राप्ति का वरदान पाकर लौटीं। बाद में उच्च कुल की स्त्रियाँ भांति भांति के पकवान लेकर गौरी जी और शंकर जी की पूजा करने पहुँचीं। उन्हें देखकर भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा, 'तुमने सारा सुहाग रस तो साधारण कुल की स्त्रियों को ही दे दिया। अब उन्हें क्या दोगी?'
पार्वत जी ने उत्तर दिया, 'प्राणनाथ, आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहागरस दूँगी। यह सुहागरस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से मुझ जैसी सौभाग्यशालिनी हो जाएगी।'
जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वती जी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर छिड़क दिया, जिस जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। अखंड सौभाग्य के लिए प्राचीनकाल से ही स्त्रियाँ इस व्रत को करती आ रही हैं।
इसके बाद भगवान शिव की आज्ञा से पार्वती जी ने नदी तट पर स्नान किया और बालू के महादेव बनाकर उनका पूजन करने लगीं। पूजन के बाद बालू के ही पकवान बनाकर शिवजी को भोग लगाया। इसके बाद प्रदक्षिणा करके, नदी तट की मिट्टी के माथे पर टीका लगाकर, बालू के दो कणों का प्रसाद पाया और शिव जी के पास वापस लौट आईं।
इस सब पूजन आदि में पार्वती जी को नदी किनारे बहुत देर हो गई थी। अत: महादेव जी ने उनसे देरी से आने का कारण पूछा। इस पर पार्वती जी ने कहा- 'वहाँ मेरे भाई-भावज आदि मायके वाले मिल गए थे, उन्हीं से बातें करने में देरी हो गई।'
परन्तु भगवान तो आख़िर भगवान थे। वे शायद कुछ और ही लीला रचना चाहते थे। अत: उन्होंने पूछा- 'तुमने पूजन करके किस चीज का भोग लगाया और क्या प्रसाद पाया?'
पार्वती जी ने उत्तर दिया- 'मेरी भावज ने मुझे दूध-भात खिलाया। उसे ही खाकर मैं सीधी यहाँ चली आ रही हूँ।' यह सुनकर शिव जी भी दूध-भात खाने के लालच में नदी-तट की ओर चल पड़े। पार्वती जी दुविधा में पड़ गईं। उन्होंने सोचा कि अब सारी पोल खुल जाएगी। अत: उन्होंने मौन-भाव से शिव जी का ध्यान करके प्रार्थना की, 'हे प्रभु! यदि मैं आपकी अनन्य दासी हूँ तो आप ही इस समय मेरी लाज रखिए।'
इस प्रकार प्रार्थना करते हुए पार्वती जी भी शंकर जी के पीछे-पीछे चलने लगीं। अभी वे कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें नदी के तट पर एक सुंदर माया महल दिखाई दिया। जब वे उस महल के भीतर पहुँचे तो वहाँ देखते हैं कि शिव जी के साले और सलहज आदि सपरिवार मौजूद हैं। उन्होंने शंकर-पार्वती का बड़े प्रेम से स्वागत किया।
वे दो दिन तक वहाँ रहे और उनकी खूब मेहमानदारी होती रही। तीसरे दिन जब पार्वती जी ने शंकर जी से चलने के लिए कहा तो वे तैयार न हुए। वे अभी और रूकना चाहते थे। पार्वती जी रूठकर अकेली ही चल दीं। तब मजबूर होकर शंकर जी को पार्वती के साथ चलना पड़ा। नारद जी भी साथ में चल दिए। तीनों चलते-चलते बहुत दूर निकल गए। सायंकाल होने के कारण भगवान भास्कर अपने धाम को पधार रहे थे। तब शिव जी अचानक पार्वती से बोले- 'मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल आया हूँ।'
पार्वती जी बोलीं -'ठीक है, मैं ले आती हूँ।' किंतु शिव जी ने उन्हें जाने की आज्ञा नहीं दी। इस कार्य के लिए उन्होंने ब्रह्मापुत्र नारद जी को वहाँ भेज दिया। नारद जी ने वहाँ जाकर देखा तो उन्हें महल का नामोनिशान तक न दिखा। वहाँ तो दूर-दूर तक घोर जंगल ही जंगल था।
इस अंधकारपूर्ण डरावने वातावरण को देख नारद जी बहुत ही आश्चर्यचकित हुए। नारद जी वहाँ भटकने लगे और सोचने लगे कि कहीं वह किसी ग़लत स्थान पर तो नहीं आ गए? सहसा बिजली चमकी और नारद जी को माला एक पेड़ पर टंगी हुई दिखाई दी। नारद जी ने माला उतार ली और उसे लेकर भयतुर अवस्था में शीघ्र ही शिव जी के पास आए और शिव जी को अपनी विपत्ति का विवरण कह सुनाया।
इस प्रसंग को सुनकर शिव जी ने हंसते हुए कहा- 'हे मुनि! आपने जो कुछ दृश्य देखा वह पार्वती की अनोखी माया है। वे अपने पार्थिव पूजन की बात को आपसे गुप्त रखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने झूठ बोला था। फिर उस को सत्य सिद्ध करने के लिए उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से माया महल की रचना की। अत: सचाई को उभारने के लिए ही मैंने भी माला लाने के लिए तुम्हें दुबारा उस स्थान पर भेजा था।'
इस पर पार्वतीजी बोलीं- 'मैं किस योग्य हूँ।'
तब नारद जी ने सिर झुकाकर कहा- 'माता! आप पतिव्रताओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। आप सौभाग्यवती आदिशक्ति हैं। यह सब आपके पतिव्रत धर्म का ही प्रभाव है। संसार की स्त्रियाँ आपके नाम का स्मरण करने मात्र से ही अटल सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं और समस्त सिद्धियों को बना तथा मिटा सकती हैं। तब आपके लिए यह कर्म कौन-सी बड़ी बात है?
हे माता! गोपनीय पूजन अधिक शक्तिशाली तथा सार्थक होता है। जहाँ तक इनके पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना को छिपाने का सवाल है। वह भी उचित ही जान पड़ती है क्योंकि पूजा छिपाकर ही करनी चाहिए। आपकी भावना तथा चमत्कारपूर्ण शक्ति को देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है।
मेरा यह आशीर्वचन है- 'जो स्त्रियाँ इस तरह गुप्त रूप से पति का पूजन करके मंगल कामना करेंगी उन्हें महादेव जी की कृपा से दीर्घायु पति का संसर्ग मिलेगा तथा उसकी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होगी। फिर आज के दिन आपकी भक्तिभाव से पूजा-आराधना करने वाली स्त्रियों को अटल सौभाग्य प्राप्त होगा ही।'
यह कहकर नारद जी तो प्रणाम करके देवलोक चले गए और शिव जी-पार्वती जी कैलाश की ओर चल पड़े। चूंकि पार्वती जी ने इस व्रत को छिपाकर किया था, उसी परम्परा के अनुसार आज भी स्त्रियाँ इस व्रत को पुरूषों से छिपाकर करती हैं। यही कारण है कि अखण्ड सौभाग्य के लिए प्राचीन काल से ही स्त्रियाँ इस व्रत को करती आ रही हैं। (उपरोक्त लेख मेरी मौलिक रचना नहीं है | यह पहले भारत कोश में लिखा गया था | यंहा पर चित्र अभी नहीं लगाए गए है चित्र गणगौर विसर्जन के दिन लगाऊँगा उस दिन हमारे यंहा मेला भी लगता है | चित्र और वीडियो हेतु देखने हेतु आप दुबारा यंहा जरूर आइये  | )