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Monday, November 17, 2008

कंहा गए गिद्धराज

भारत में पर्यावरण को बचाए रखने में गिद्धों की महत्वपूर्ण भूमिका है । गिद्धों का साफ़-सफ़ाई में बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। 90 के दशक के शुरुआत में भारत में करोड़ों की संख्या में गिद्ध थे,लेकिन अब इनके दर्शन केवल तस्वीरों में ही होते है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगले कुछ सालों में एशियाई गिद्ध विलुप्त हो सकते हैं। इसके लिए जानवरों को दी जाने वाली एक दवा को दोषी ठहराया गया है। इस दवा का नाम है diclofenac (डाइक्लोफ़ेनाक)। जी हां ठीक समझे ताऊ की हरी पन्नी वाली गोली । जिसका परचार टीवी पर खूब आता है। यह पशुओं को दर्दनाशक के रुप मे दी जाती है इस दवाई को खाने के बाद यदि किसी पशु की मौत हो जाती है तो उसका मांस खाने से गिद्द मर जाते हैं। सर्वेक्षणों में मरे हुए गिद्धों के शरीर में डायक्लोफ़ेनाक के अवशेष मिले हैं। हालांकि भारत सरकार शुरुआत में कुछ हिचक रही थी लेकिन बाद में वह मान गई कि इस दवाई के कारण ही गिद्धों की मौत हो रही है।
भारत सरकार ने इसे वर्ष 2006 में प्रतिबंधित भी कर दिया। इस प्रतिबंध का कोई ख़ास असर नहीं हुआ। इसके दो कारण थे एक तो भोजन चक्र से इसका असर ख़त्म होने में काफ़ी वक़्त लगेगा दूसरा यह केवल पशुओं की दवा के रूप में बन्द हुइ थी मानवीय दवा में अभी भी बिक्री में है जिसका उपयोग हमारे पशुचिकित्सक मजे से कर रहे है। भारत सरकार से संबद्ध नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ़ ने भी डायक्लोफ़ेनाक पर प्रतिबंध लगाने की सिफ़ारिस की थी। बाद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे स्वीकार कर लिया और डायक्लोफ़ेनाक की जगह दूसरी दवाइयों के उपयोग को मंज़ूरी दे दी। लेकिन डाइक्लोफ़ेनाक की जगह जिस मेलोक्सिकैम नाम की दवा के उपयोग की सलाह दी थी वह डाइक्लोफ़ेनाक की तुलना में दोगुनी महंगी है इसलिए इसका उपयोग नहीं हो रहा है। वैसे तो गिद्ध भारतीय समाज में एक उपेक्षित सा पक्षी है लेकिन सफ़ाई में इसका सामाजिक योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गिद्धों के विलुप्त होने की रफ़्तार यही रही तो एक दिन ये सफ़ाई सहायक भी नहीं रहेंगे।
वैज्ञानिकों का कहना है कि गिद्धों को न केवल एक प्रजाति की तरह बचाया जाना ज़रुरी है बल्कि यह पर्यावरणीय संतुलन के लिए भी ज़रुरी है। वे चेतावनी देते रहे हैं कि गिद्ध नहीं रहे तो आवारा कुत्तों से लेकर कई जानवरों तक मरने के बाद पड़े सड़ते रहेंगे और उनकी सफ़ाई करने वाला कोई नहीं होगा और इससे संक्रामक रोगों का ख़तरा बढ़ेगा ।
इस जानकारी को आप तक पहूंचाने की प्रेरणा मुझे ताऊ रामपुरीया की इस पोस्ट से मिली है जिसमे उन्होनें कम होते पक्षीयों के बारे में चर्चा की है

5 comments:

  1. आपकी बात बिल्कुल सही है किंतु मै बिजनौर उत्तर प्रदेश से हूं। मेरे यहां वन में गिद्ध आराम से मिल जाते हैं किंतु इनकी आे विभाग के किसी जिम्मेदार अधकारी का ध्यान नही जाता। इनके संरक्षण में भी किसी की रूचि नजर नही आती।
    अशोक मधुप

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  2. गिद्धों की गिरती संख्या पर्यावरण संतुलन के लिए बहुत ही चिंताजनक है | आपके द्वारा बताई गई दवाई के दुष्परिणामों के बारे में भी लोगों को बता कर जागरूक बनाने की जरुरत है |सरकारी कोशिश के अलावा हमें भी अपने गावं व अपने आस पास के लोगों को इस सम्बन्ध में जानकारी देकर गिद्धों को बचाने की मुहीम शुरू करनी चाहिए |

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  3. अशोक जी, टिप्पणी के लिये धन्यवाद,बिजनौर उत्तर प्रदेश के वनो में गिद्ध आराम से मिल जाते हैं यह जानकर खुशी हुई । वैसे चन्डीगढ में भी एक गिध्दों के प्रजनन के लिये पार्क बनाया जा रहा है ।

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  4. सडीगली गंदगी के उन्मूलन के द्वारा गिद्ध बहुत बडी समाज सेवा करते हैं. उनको नाश होने से बचाने के लिये करोडों रुपये निवेश किये जाये तो भी कम है क्योंकि उनके पूर्ण विनाश के बाद यह गंदगी प्रलय मचा सकती है.

    सस्नेह -- शास्त्री

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  5. सहमत हूँ गिद्ध हमारी बहुत मदद करते हैं इसी प्रकार कुत्ते कोव्वे और अन्य कई जानवर और पक्षी भी हैं जो पर्यावरण को स्वच्छ रखने में हमारी मदद करते हैं। रोचक जानकारी के लिए आभार!

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