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Friday, November 14, 2008

परीचय एक विशिष्ट व्यक्तित्व का

शेखावाटी में परोपकारी लोगों की कमीं नही है। लेकिन कुछ लोग अपने व्यक्तित्व से उस सीमा तक पहूंच जाते है कि आने वाली पीढियां उन्हे भुला नही पाती । एसे ही एक परोपकारी,विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे वैधश्री मोहन लाल जी कानोडिया। मोहन लाल जी सूरजगढ के रहने वाले थे । सूरजगढ,झुन्झुनूं जिले का कस्बा है शेठ लोगों का गांव है। जयपुर से लूहारू जो रेल्वे लाइन है उस पर लूहारू से पहले आता है सूरजगढ, यहा पर अनाज की मन्डी भी है । मोहन लाल जी से मेरा ज्यादा मिलना नही हुवा । लेकिन दो तीन बार की भेंट में ही वे अपने कार्य व व्यक्तित्व की छाप मुझ पर छोड गये । सूरजगढ मे बुहाना चोक के पास उनकी हवेली है । पहली बार मै उनसे मिलने एक रिश्तेदार की दवा दारू के लिये गया था। 9य10 बजे का वक्त रहा होगा जब मैं उनके घर पर पहूचा । काफ़ी मरीज वहां पर बैठे थे । सफ़ेद बनीयान व सफ़ेद धोती बान्धे एक बुजुर्ग बारामदे में उनको आयुर्वेदिक दवाइया दे रहे थे। हमारा नम्बर आया तो हमसे हमारा परीचय किया फ़िर रोग के बारे में पूछा और दवाइयां दी। जब फ़ीसके बारे में पूछा तो मुस्करा के बोले मेरी फ़ीस ज्यादा नही लेकिन कठिन है। आप पहले ठीक हो जाओ, बाद मे ले लेंगे। एक हफ़्ते बाद जब हम दुबारा उनसे मिले तो काफ़ी खुल से गये थे। अपनापनसा लगने लग गया था । देखते ही हमारा नाम लेकर पूछा कैसे हो ? उनकी याददाश्त देख कर मुझे बहूत ही आश्चर्य हुआ । रोजाना उनके पास कम से कम सो मरीज तो आते ही होगें इस हिसाब से सात दिनो मे सात सो हुए उनमें हमारा नाम याद कैसे रख लिया। वो सभी मरीजों व उनके परीजनों को नाम से ही पूकारते थे । यह एक छोटा सा उदाहरण है उनकी याददाश्त का । अबकी बार हम लोग थोडी देरी से गये थे । इसलिये वो थोडे फ़्री लग रहे थे सो मैनें उनसे काफ़ी जानकारी लेली । वो जो दवा लोगॊं को देते थे वो जंगल व खेत खलीहानों से इकठ्ठी करवाते है । अन्य मरीजों को व परीजनों को जिसकी जैसी हैसियत वैसा ही कार्य सोंपते है। जैसे दर्जी को कपडे के बची हुइ कतरने लाने के लिये बोलते थे ताकी उनसे मलहम की पट्टीयां बनाई जा सके। मजबूत शरीर वाले को ओषधीयां कूट्ने पीसने का काम देते थे।उनकी कार्यावधी ८ से १२ बजे तक रहती थी । इस समय दोरान वे मरीजों मे भेदभाव नहीं करते थे। मरीज चाहे किसी भी क्षेत्र,जाती,लिंग,समाज या धर्म का हो उनके लिये मरीज ही होता था। ऐसे निस्वार्थ भाव से सेवा करने वाले इस युग मे बहूत कम ही होते है। इस महान आत्मा का कुछ वर्ष पूर्व निधन हो गया है। वर्तमान में उनके पुत्र श्री महेश जी कनोडीया उनके ही पदचिन्हों पर चल रहे है। हालान्की मेरी तो अभी तक महेश जी से मुलाकात नही हुइ है लेकिन जैसा की लोगों ने बताया है वे भी बहुत ही परोपकारी हैं।

4 comments:

  1. वैधश्री मोहन लाल जी कानोडिया के बारे जानकर बहुत अच्छा लगा ऐसे परोपकारी लोग कम ही मिलते है

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  2. समाज में व्याप्त बुराईयों एवं बुरे लोगों को देख कर हम अकसर भूल जाते हैं कि इसी भ्रष्ट समाज में तमाम सारे फरिश्ते भी है.

    ऐसे लोगों को ढूढ निकाल कर उनके बारे में समाज को बताना जरूरी है.

    लिखते रहें.

    इस साईज के हर आलेख को 4, या कम से कम 3, पेराग्राफ में बांट दें जिससे पठनीयता बहुत बढ जाती है.

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  3. गांव देहात में ऐसे लोग आज भी काफी तादात में है.. आभार मोहन लाल जी से मिलवाने के लिये..

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  4. ऐसे लोग वाकई कम ही होते हैं। इन लोगों के लिए हम दुआओं के सिवा क्या कर सकते हैं। मोहन लाल जी की आत्मा शांति की कामना के साथ उनके सुपुत्र महेश जी की लंबी उम्र की कामना करता हूँ।

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