मार्च के महीने में खींपोळी की पैदावार होती है जो इस बार कम ही रही थी | पिछले साल इसके बारे में मैंने लिखा था तो काफी लोगो ने इसके बारे में जानकारी मांगी | बहुत से विदेशी लोगो ने ( इजराइली ) तो इसके बीज की मांग भी की थी | मै आपको बता रहा था कि पिछले हफ्ते मै खेत में गया था | अपनी बकरी को साथ लेकर के ( आश्चर्य मत कीजिये मै एक बकरी भी रखता हूँ ) और अपना सहायक टूल को लेकर जो बड़े से बांस का बना हुआ है | राजस्थान के लोग जानते है कि इसका उपयोग भेड बकरी पालन करने वाले ऊँचे पेड की टहनी वगैरा अपने पशुओ को खिलाने हेतु इसका उपयोग करते है |
मै गया था बहुत आशा लेकर के लेकिन वहा जा के पेड़ों की हालत देखकर भविष्य की भयावहता का अंदाजा लग गया | पर्यावरण को लेकर पर्यावरणविदों की चिंता बहुत ही जायज़ है | आज शहर में रहकर कूलर ए सी में दिन बिताने वालो को ग्लोबल वार्मिंग का डर शायद अभी नहीं सताएगा लेकिन ग्रामीणों को अभी से अंदाजा लगने लग गया है, कि आने वाले पांच दस वर्षों में क्या बदलाव आने वाला है |
पेड पर झुलसी हुयी सांगरी |
वैसे रेगिस्तान के पेड पौधे ऊँचे तापमान को सहने के लिए जाने जाते है लेकिन कितना ऊंचा उसकी कोइ सीमा तो है | अब वो सीमा भी प्रकृति लांघ गयी है | हर वर्ष 20 से 25 अप्रैल के मध्य तापमान 30 से 35 डिग्री सैंटिग्रेड रहता है वही इस समय दौरान यहां का तापमान 45 डिग्री सैंटिग्रेड तक पहुँच गया | और जब 45 डिग्री हमेशा रहता है यानी की मई के शुरआती हफ्ते में तो आजकल 37 डिग्री से ऊपर नहीं जा रहा है | हो सकता है आज कल में बारिश व ओले भी गिरने लगे | और जब सावन भादों आएगा तब आंधिया व लू के थपेड़े चलेंगे | इसी का नाम तो है ग्लोबल वार्मिंग |.
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ग्लोबल वार्मिंग के कारण सांगरी भी बळगी।
ReplyDeleteओ तो काम कमाल को ही होयगो।
अरे भाई गर्मी घणी बढ़गी।
राम राम
बात आपकी सही है. जिस क्रुरता से जंगल काटे गये हैं, उसका परिणाम भुगतने के लिये तो तैयार रहना ही होगा.
ReplyDeleteरामराम.
आप से सहमत है जी, लेकिन इंसान अभी भी नही समभला, अभी भी वक्त है... वर्ना आने वाली नस्ल का क्या होगा?
ReplyDeleteइस बार गर्मी वाकई में हर सीमा लांघ गई है. पता नहीं मई अंत में क्या होगा.
ReplyDeleteदो शाक पदार्थों के बारे में पहली बार जाना. अच्छा लगा.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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गर्मी से झुलसते हम और हमारे खाद्य ।
ReplyDeleteग्लोबल वार्मिंग का असर तो देर सवेर पड़ना ही है | हमारे खेतों में तो पता नहीं क्यों हर साल खेजड़ी के पेड़ सूख रहे है सूखे पेड़ की जब जड़ निकालते है तब उसमे बड़े बड़े कीड़े लगे मिलते है यही हाल रहा तो खेजड़ी के पेड़ कुछ ही वर्षों में गायब ही हो जायेंगे और रह जायेंगे सिर्फ बबूल के पेड़ |
ReplyDeleteसांगरी और केर तो राजस्थान के मेवे है यही नहीं बचेंगे तो हम तो कंगाल ही हुए समझो |
राम राम जी नरेश जी...
ReplyDeleteअजी ऐसा होने का तो पहले ही भान था पर इतना जल्दी हो जाएगा, सोचा नहीं था !
अपने इस वातावरण के लिए न तो किसी के पास वक़्त है और कुछ ये सोचते हैं की मैं अकेला क्या कर लूँगा और वो भी इस भीड़ का हिस्सा बन जाता है :P
अपने बड़े बुजुर्गों ने खेती किसानी में बहुत ही ध्यान रखा था यहाँ तक की वो रासायनिक खाद को भी उपयोग में नहीं लेते थे बल्कि गोबर खाद का इस्तेमाल करते थे !
प्लास्टिक की खोज तो सबसे बड़ा कारण है इस ग्लोबल वार्मिंग का !
अब तो सुब कुछ रेडीमेड हो गया है..
शेखावाटी में तो भूजल भी अपने अंतिम दौर में चल रहा है :(
जो भी है भविष्य के गर्भ में है...अपने पास दुःख व्यक्त करने के अलावा शायद ही कुछ है
अगर कुछ है तो एक छोटी सी बहस और फिर शांत.............जो होगा देखा जाएगा !!
पता नहीं इस मौसम के बदलाव का असर है या कुछ और, पर उत्तरप्रदेश में दलहन पर बुरा असर है।
ReplyDeleteआदमी तक झुलसे जा रहे हैं, फिर ये तो बेचारी सब्जियाँ ही हैं।
ReplyDelete--------
कौन हो सकता है चर्चित ब्लॉगर?
पत्नियों को मिले नार्को टेस्ट का अधिकार?
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ReplyDeletevery good naresh ji
ReplyDeleteग्लोबल वार्मिंग के चलते पिछले कुछ सालों से गुजरात में भी केरी दिसम्बर जनवरी में आने लगी है।
ReplyDeleteM to nepal m rahu hu par mero Janm sthan jhunjhunu dist. hai.
ReplyDeleteRajsthan m garmi Jayada hi padn laaggi hai.
Ram Ram ji