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Saturday, November 21, 2009

मत पूछै के ठाठ भायला - कविता

यह कविता शेखावाटी प्रसिद्ध कवि श्री महावीर जी जोशी ने लिखी है | महावीर जी जोशी झुंझुनू जिले के बसावता खुर्द गाँव के रहने वाले है, बहुत ही सम्मानित और वयोवृद्ध कवि है | राजस्थानी भाषा में उनकी अनेक कविताएं छपी है | इस कविता में एक मित्र दूसरे मित्र को अपनी जवानी और वृद्धावस्था की तुलना करके अपनी हालत का वर्णन कर रहा है |
नीचे लिखे हुये दोहे राजस्थानी भाषा मे है नीचे अंत मे कुछ कठिन शब्दों के
हिन्दी अर्थ भी दिये है फिर भी किसी पाठक को समझ मे नही आये तो वो
टिप्पणी के रूप मे या मेल द्वारा पूछ सकते है

मत पूछे के ठाठ भायला | पोळी मै खाट भायला ||
पनघट पायल बाज्या करती ,सुगनु चुड़लो हाथा मै |
रूप रंगा रा मेला भरता ,रस बरस्या करतो बातां मै |
हान्स हान्स कामन घणी पूछती , के के गुज़री रात्यां मै |
घूंघट माई लजा बीनणी ,पल्लो देती दांता मै |
नीर बिहुणी हुई बावड़ी , सूना पणघट घाट भायला |
पोळी मै है खाट भायला ||




छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो ,गोटे हाळी कांचली |
मांग हींगलू नथ रो मोती ,माथे रखडी सांकली |
जगमग जगमग दिवलो जुगतो ,पळका पाडता गैणा मै |
घनै हेत सूं सेज सजाती ,काजल सारयां नैणा मै |
उन नैणा मै जाळा पड़गा ,देख्या करता बाट भायला |
पोळी मै खाट भायला||


अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो |
दुनिया कैती कामणगारो ,अपने जुग को छैलो हो |
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं |
तन को बळ मन को जोश झळकणो ,मूंछा हाली आंटी मै |||
इब तो म्हारो राम रूखाळो , मिलगा दोनूं पाट भायला |
पोळी मै खाट भायला||



बिन दांता को हुयो जबाडो चश्मों चढ्गो आख्याँ मै |
गोडा मांई पाणी पडगो जोर बच्यो नी हाथां मै |
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अबखाई |
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की है लटक्याई ||
चिटियो म्हारो साथी बणगो ,डगमग हालै टाट भायला |
पोळी मै है खाट भायला ||


भायला -दोस्त
पोळी - घर का मुख्य दरवाजा जहा मेहमानों को बैठाया जाता है | राजस्थानी घरो में पुराणी परम्परा के अनुसार मेहमानखाना दो दरवाजो का होता है | उसकी छत कच्ची होती है घर में जाने का मार्ग उसमे से होकर जाता है |
बरस्या- बरसना
कामण - कमनिय औरत
घणी - ज्यादा
बीनणी- वधु
नीर बिहुणी - बिना पानी के
कांचळी - अंगिया (वस्त्र)
हीन्गळू -मांग भरने का सिन्दूर
नथ- नाक का गहना
रखडी - माथे के उप्पर पहनने का गहना
सान्कळी- (जंजीर रूपी गहना जो माथे पर बांथा जाता है )
दिवलो -दीपक
जुगतो- जलना , प्रकाशमान होना
पळका - चोन्ध्याने की क्रिया
गैणा- गहना
सारया - खैंचना ( आँखों में काजल की लाइन खीचने का भाव )
बाट - इंतजार करना
अतर - इत्र
कैती- कहती
जुग - समय
पण- परन्तु
हाळी - वाली
रूखाळो- रखवाला
मिलगा दोनू पाट - विचार हीन होना ,दुनिया दारी से आँखे बंद कर लेना
गोडा- घुटना
हाड - हड्डियां
पीड़ पळै - दर्द बढ़ना
अबखायी - शारीरिक परेशानी
घर्डावै- घर्र घर्र की आवाज आना
डील - देही
चिटियो - बूढे आदमियों के सहारे के लिए बनी लकडी जो ऊपर से मुडी हुई होती है |
डगमग - ज्यादा हिलना डुलना
टाट - खोपडी




















7 comments:

  1. साहिब जी, बहुत दिन इंतजार के बाद आप आये ( बात ही ऐसी थी - हमें भी बहुत...... ) आपका स्वागत है
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    प्रीत आपरी सायनी होगी म्हारै गैल ।
    भारी पडज्या गांव नै जिया कंगलौ छैल॥
    बहुत सुन्दर लगा आपका प्रयास ... साधुवाद ... कृपया मुझे इस छंद का पूरा आशय समझावें - घणा घणा मान आपका - नरेन्द्र

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  2. यह कविता है तो रास्थानी मे लेकिन काफ़ी हद तक समझ आ गई, बहुत सुंदर लगी, थोडा हिन्दी मै इस का सरल भाषा मै अर्थ बता देते तो ओर भी मजा आता.
    धन्यवाद

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  3. नरेश जी बहुत बढ़िया कविता छाँट कर लाये हो ! पढ़कर मजा आ गया |
    यह भायला शब्द भी कितना अपना पण लिए होता है इसीलिए तो मैंने एक भायला .कॉम के नाम से डोमेन ले रखा है

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  4. बहुत शानदार पोस्ट. पता नही कैसे नजर से बच गई? आज पढने मे आई. बहुत धन्यवाद.

    रामराम.

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  5. कर दिया थे तो ठाठ भायाला,
    भाई नरेश सिंग जी घणो सुवाद आयो थारा ब्लाग पै आयके, मै तो पांच मिनट दे्खण ही आयो थो पण पुरो डेढ घंटो लाग ग्यो अठै ही,
    शायद द्स महीना इतणी देर कहंका ब्लाग पै रुक्यो होऊंगो, थाने मेरी घणी-घणी बधाई, हां रतन सिंग जी सुं बातां होयबो करै म्हारी

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  6. नरेश जी ,
    आदरणीय श्री महावीरजी जोशी की सुंदर कविता आपके ब्लॉग पर पढ़ी. आनंद आ गया . गाँव का वातावरण साकार हो उठा .गाँव की याद ताज़ा हो गयी .वाकई सुंदर .

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