नीचे लिखे हुये दोहे राजस्थानी भाषा मे हैँ नीचे अंत मे कुछ कठिन शब्दों के
हिन्दी अर्थ भी दिये है फिर भी किसी पाठक को समझ मे नही आये तो वो
टिप्पणी के रूप मे या मेल द्वारा पूछ सकते है ।
सूका सूका खेतडा पण नैणा मै बाढ ।
घर मँ कोनी बाजरी ऊपर सूँ दो साढ ॥
जद सूँ पाकी बाजरी काचर मोठ समेत ।
दिन भर नापै चाव सूँ पटवारी जी खेत ॥
फिर फिर आवै बादळी घिर घिर आवै मेह ।
सर सर करती पून मँ थर थर कांपै देह ॥
होगी सोळा साल री बेटी करै बणाव ।
कद निपजैली टीबडी कद मांडूला ब्याव ॥
टूटी फूटी झूँपडी बरसै गरजै गाज ।
इण चौमासै रामजी दोराँ रहसी लाज ॥
टाबर टीकर मोकळाँ करजै री भरमार ।
राम रूखाळी राखजै थाँ सरणै घरबार ॥
निरधनियाँ नै धन मिल्यो रोजणख्याँ नै राग ।
राम बता कद जागसी परदेसी रा भाग ॥
उगतो पिणघट ऊपराँ सुणतो मिठी बात ।
गळी गुवाडी घूमतो चान्दो सारी रात ॥
ना पिणघट ना बावडी ना कोयल ना छाँव ।
तो भी चोखो सहर सूँ म्हारो आधो गांव ॥
सांझ ढळ्याँ नित जांवता देखै सारो गांव ।
पिरमा थारी लाडली पटवारी रै ठांव ॥
पैली उठती गौरडी पाछै उठती भोर ।
झांझर कै ही नीरती सगळा डांगर ढोर ॥
छैल सहर सूँ बावडै खरचै धोबा धोब ।
पडै गांव मै रात दिन पटवारी सा रोब ॥
जद मन तरस्यो गांव नै जद जद हुयो अधीर ।
दूहा रै मिस मांडदी परदेसी री पीर ॥
प्रीत आपरी अचपळी घणी करै कुचमाद ।
सुपना मै सामी रवै जाग्या आवै याद ॥
पाती लिख रियो गांव नै अपरंच ओ समचार ।
दुख पावुँ परदेस मँ जीवूँ हूँ मन मार ॥
राग रंग नी आवडै कींकर उपजै तान ।
घर मै कोनी बाजरी अर टूट्योडी छान ॥
घर दे घर रूजगार दे घर घर री दे साख ।
ना देवै तो सांवरा जीवण पाछो राख ॥
बिन हरियाळी रूंखडा घरघूल्या सा ठांव ।
’राही’ दीखै दूर सूँ थारो आधो गांव ॥
लेग्या तो हा गांव सूँ कंचन देही राज ।
पाछी ल्याया सहर सूँ खांसी कब्जी खाज ॥
गाय चराती छोरडयाँ जोबन सूँ अणजाण ।
देख ओपरा जा लूकै कर जांटी री आण ।।
जोध जुवानी बेलड्याँ मिलसी करयाँ बणाव ।
आखडजै मत पावणा पगडंड्या रै गांव ॥
के तडपासी बादळी के कोयल री कूक ।
पैली ही सूँ काळजो हुयो पड्यो दो टूक ॥
अजब पीर परदेस री म मर जीवै जीव ।
घर मै तरसै गोरडी परदेसाँ मै पीव ।।
ना आंचळ ना घूंघटो ना हीवडै मै लाज ।
घिरसत पाळै गोरडी रोटी पोवै राज ॥
घाटै रो घर दे दिये दुख दीजै अणचींत ।
मतना दीजे सांवरा परदेसी री प्रीत ॥
धान महाजन रै घराँ ढोर बिक्या बे दाम ।
करज पुराणो बाप रो कीयाँ चुकै राम ॥
बेटो तो परदेस मै घर बूढा मा बाप ।
दोनो पीढी दो जघाँ दुख भोगै चुपचाप ॥
ठाला बिन रूजगार कै ताना देता लोग ।
भरी न अब तक गांव सूँ मनस्या बळण जोग ॥
जद जासी परदेस तूँ हुसी जद बरबाद ।
दरद दिसावर ई कडया रोज करैलो याद ॥
कितरा ही दुहा लिखूँ अकथ रहीज्या भाव ।
परदेसी रो दरद तो है गूंगै रो भाव ॥
कठिन राजस्थानी शब्दो के हिन्दी अर्थ :-
जठै - जहां
पर पूठ = पीछे से
रूंखडा = पेड़
खळा = खलिहान
धोरा = टीला
बां खातर = उसके लिये
तज =त्याग
बिरथा = व्यर्थ
जूण = योनी
चौपड़= चौसर ( एक प्रकार का खेल )
ठीडै = जगह
ठुकरेश = राजपूती हेकडी
ठोड अर ठांयचै = जगह ठिकाना
हिरण्यां और कीरत्यां = एक प्रकार के तारे जो रात्री में समय देखने के काम आते है
पाण्डियो =पंडित
* बेलिया -साथी
* बध बध - आगे आकर
* ओळमा - उलाहना
*बाँथ- आलिंगन
*पैली - एक
*सायना -हम उमर
*सेज़ाँ - शयन करने की जगह
*गौरडी - गणगौर जैसी नायिका
* गेल -पिछला
*परणेत - पत्नी
*बेली- साथी
*लोगडा - आम आदमी
*घूमन - फिरना
*बेलिया- साथिया
*पीसां - पैसे
*सगळा -सभी
*कग्यो - कह गया
*मांड्या - लिखना
*कंवळै - दीवार पर
*मैडी - ऊंचा स्थान
*दोरा सोरा - जैसे तैसे किसी कार्य को करना
*गैला - पागल
*लाजां - लज्जा
*चीरडा - चिथड़े
* रात्यूं - रात भर
*फाग - एक प्रकार की ओढ़नी जो फाल्गुन में राजस्थानी औरते पहनती है
*सून्पी- सौंप दिया
* र्रैँतां थका - होने के बावजूद
*सूगली - गंदी
*डूंगरी - पहाडी
*जिण रो - जिस का
पण - परंतु
कोनी- नही
सूँ- से
साढ- आषाढ (महिना)
मेह- बारिश
पून- हवा
सोळा- सोलह
निपजैली- पैदा होगी
टीबडी - छोटा खेत जिसमे एक छोटा टीला भी हो
मांडूला - शादी तय करूंगा
मोकळा - प्रयाप्त
करजै - कर्ज
रूखाळी - रखवाली
चान्दो - चन्द्र्मा ( नायक को दी गयी उपमा )
पिणघट - पनघट
ठांव - अड्डा
पिरमा- प्रेमा नाम का अपभ्रंश रूप
पीव - प्रेमी
घिरसत - गृहस्थी
घाटै - गरीबी
बिक्या- बिकना (विक्रय)
हुसी- होगा
जद- जब
अकथ- जो कहा न जा सके
सगळा - सब
नीरती - पशुधन को भोजन देना
डांगर ढोर - पशुधन
बावडै - वापिस आना
मिस- बहाना करना
मांडदी - लिख दी
अचपळी - नटखट
घणी - ज्यादा
कुचमाद - बदमाशी
रवै - रहना
जाग्या - जागना
आवै - आना
आवडै - पसन्द आना
कींकर - कैसे
छान - फूस की छत
घरघूल्या - घरौन्दे
पाछी - वापस
लेग्या- लेकर जाना
ओपरा - पराया
लूकै - छिपना
जांटी - खेजडी ( राजस्थानी वृक्ष )
आण - ओट मे , सोगन्ध
- .
बहुत ही मजेदार और बढ़िया ! आपने जो कवि सम्मलेन की वीडियो सी डी भेजी थी उसमे में भी भागीरथ सिंह जी द्वारा प्रस्तुत मेरो गांव वाली कविता सुनकर बहुत मजा आया | एक बहुत काबिल कवि से परिचय कराने के लिए आभार |
ReplyDeleteवाह जी लाजवाब. और शब्दों के भावार्थ देकर तो सभी के लिये इसको बिल्कुल सुगम बना दिया आपने. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
घर दे घर रूजगार दे घर घर री दे साख ।
ReplyDeleteना देवै तो सांवरा जीवण पाछो राख ॥
वाह्! लाजवाब दोहे! अपने आप में कितने गहरे अर्थ संजोये हुए।
आभार्!
दिलचस्प है..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना है अब तो राजस्थानी भी फ़्री में सीख रहे हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद!
----
मानव मस्तिष्क पढ़ना संभव
वाह्! लाजवाब दोहे!
ReplyDeleteBahut khoob sunta hu or apne mitro ko subata hu ..
ReplyDeleteAbb wapas challa ye hi shabd h har ek je...
Bahut badiya Kavita Likhiya Apne
ReplyDelete