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Wednesday, November 9, 2011

पहली हवाई यात्रा,शारजहा ,दुबई ,अफगानिस्तान part-3

      २६ दिन एजेंट के पास बिताने के बाद वो घड़ी भी आगयी जब हमें कम्पनी के कैम्प में जाने का मौका मिल गया था | वो जगह आबू धाबी में थी जो की शारजहा से २०० किमी के लगभग होगी | रास्ते में बुर्ज खलीफा की लाइटों के दर्शन भी कर लिए थे |  अँधेरे में दूर से और क्या दिखाई देता | खैर कम्पनी के कैम्प में सारी व्यवस्था अच्छी थी किसी प्रकार की कोइ शिकायत नहीं है रहने खाने की अच्छी व्यवस्था थी | शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह का भारतीय भोजन मिल रहा था | ६ दिन वंहा बिताने के बाद हमारी फ्लाईट  अफगानिस्तान के लिए हो गयी  दुबई हवाई अड्डे पर कोइ परेशानी नहीं आई | सारा काम कंपनी का होने की वजह से हम लोगो को कुछ भी नहीं पूछा गया , बाद में पता चला की ये फ्लाईट सीधी अमेरिका की फोज का बेस कैम्प है ,वंहा जाती है सो हम लोगो को पूछना तो दूर की बात है| वीसा की भी कोइ जरूरत नहीं है | बस टिकट ही देखी जाती है |
    
     तीन घंटे के लगभग सफ़र रहा था दुबई से अफगानिस्तान का | इस फ्लाईट की कंपनी अच्छी थी ,एयर अरबिया की तरह कडकी कम्पनी नहीं थी | इसमें खाने पीने का पूरा इंतजाम था | सफ़र पूरा होने के बाद यंहा फोज के सारे सुरक्षा मानक पूरे करने पड़े जिसमे बहुत सी प्रक्रिया होती है | 

     बाद में कंपनी के ट्रांजिट कैम्प में ले जाया गया तब वंहा पता लगा की हमारा ये सफ़र तो अभी आधा ही हुआ है अभी तो सफ़र बाकी है | जंहा काम करना था वो जगह ये नहीं है यंहा तो केवल कैम्प बना रखा है  तीन दिन बाद में इस कैम्प से भी हमें रवाना किया ज रहा था | कहा गया की आपकी फलाईट रात ११.3० पर इस लिए रात को सोने का तो सवाल ही नाही था | बाद में खबर मिली की ११.३० पर नहीं है रात ३.३० पर है | सो रतजगा करते रहे है | एक बस में बैठा कर हवाई अड्डे पर लाया गया वंहा सामान का और हमारा भी वजन किया गया | हमारा वजन १८ किलो बढ़ गया था | चौकिये मत एसा कोइ हम ने ज्याद नहीं खा लिया था | की वजन बढ़ जाए ये तो हम लोगो को जो ड्रेस दिया गया था उसकी वजह से था | बुलेटप्रूफ जैकेट और एक टोपा दिया गया जो सैनिक  पहनते है जिसका वजन १८ किलो था | सब प्रक्रिया होने में सुबह के ५ बज गए थे | वंहा नित्यक्रम का कंही जुगाड़ हमें दिखा ही नहीं | एक छोटा चार्टर्ड प्लेन जिसमे कुल बीस सवारी थी | जिनम हम चार पांच हिन्दुस्तानी थे बाकी सब विदेशी थे | उन लोगो की भाषा अपनी समझ के बाहर थी हालांकि वो लोग अंगरेजी ही बोल रहे थे | लेकिन आपको तो पता ही है की मेरा अंग्रेजी तो दूर की बात है हिन्दी में भी हाथ कमजोर ही है |
     कोइ घंटे भर की यात्रा के बाद हम लोगो को उतारा गया वंहा अलग अलग जगह के लिए फिर नयी यात्रा की जानी थी | जिनमे मेरे साथ आये हुए मेरी कंपनी के लोग भी अलग जगह के लिए रवाना हो गए हम दो आदमी जिनमे मेरे अलावा एक भाई ग्वालियर का आमोद चौहान भी मेरे साथ था | हम दोनों को चार पांच लोगो के साथ रवाना किया गया| अब की बार एक जीप में बैठाया गया उसमे ठूंस ठांस कर सामान भी लाद दिया गया  | मेरे पास सामान भी काफी हो गया था ,जिनमे एक बड़ा थैला ( चाय का चालीस किलो वाला आता आपने भी देखा होगा ) उसके जैसा बैग थाजिसमे कंपनी द्वारा दिया गया सामान था जैसे सर्दी का कपड़ा जैकेट ,स्लीपिंग बैग आदि जैसे सामान थे | हेलमेट बुलेट प्रूफ जैकेट ,और मेरा घर से लाये हुए कपडे का मेरा निजी बैग  | जीप कोइ दस मिनट चलने के बाद रूक  गयी | रास्ते भर हमें कोइ चिड़िया भी नजर नहीं आयी लगा जैसे जंगल में सडक बना रखी हो | जंहा जीप रुकी वंहा हेलीपेड था | एक हेलीकाप्टर पहले से ही हमारा इन्तजार कर रहा था | उसमे हम ५-६ आदमी को बैठा दिया गया पीछे के हिस्से में सामान रखा गया |  और हमें बुलेटप्रूफ जैकेट और टोपा पहनने के आदेश दिए गए ,हम लोगो ने पहन लिए | पहने के बाद अपने आपको काफी असहज मह्शूश कर रहा था | क्यों की उस जैकेट की बनावट बंद गले के स्वेटर जैसी थी | और रहा सहा उसका वजन १८ किलो अपने सीने पर महशूस कर रहा था |
चित्र गूगल के सोजन्य से
थोड़ी देर तक तो मै सहन करता रहा कोइ घंटे भर की यात्रा मैंने पहलू बदलते हुए जैसे तैसे पूरी की ,लेकिन अब मुझे मेरा दम घुटता सा महसूस होने लगा ,मैंने काफी कोशिस की नीचे की तरफ आते जाते बस्ती पेड़ पहाड़ आदि में मन लगाने की लेकिन जब बल्ड प्रेसर हाई हो जाता है तब किसी चीज में मन नहीं लगता है | सुबह जब चले थे तब बहुत ठण्ड थी इस लिए जैकेट पहन रखी थी | उसको निकाले बगैर हेल्कोप्टर में बैठते समय मैंने उसके ऊपर ही बुलेटप्रूफ जैकेट पहन ली थी | रात भर का जगा हुआ था ,सुबह से कुछ खाया नहीं ऊपर से ये सीने पर वजन और ऊपर थोड़ा हवा का दबाव भी कम हो जाता है  साथ में हेल्कोप्टर का शोर ये सब कारण मिलकर मेरे हालत खराब कर रहे थे | मैंने अपने आपको सहज रखने की कोशिस की लेकिन दो घंटे बाद  एका एक  मुझे चक्कर आया और मै दो तीन मिनट के लिए बेहोश हो गया | पायलट का साथी मुझे देख कर घबरा गया ,उसने जल्दी से मेरी जैकेट निकाली ,हेलमेट हटाया ,पानी के छीटे दीये  तब मुझे होश आया और मै अपने आपको सीट पर लेटा हुआ पाया | होश आने पर दिमाग ने थोड़ा काम किया ,मन ही मन में सोचा की अगर मै आँख खुली रखूंगा तो ये सहायक पायलट मुझे दुबारा इस १८ किलो के जैकेट को पहनने के लिए कहेगा सो मैंने दुबारा सोते रहने का नाटक किया ये नाटक मुझे कोइ आधा घंटा भर करना पडा तब कंही जाकर हमारा गंतव्य स्थान आया |  हमने उन  पायलटो को बाय बाय किया | हमें लेने के लिये कैम्प का मैनेजर वंहा पहले से ही इन्तजार कर रहा था | उसको मैंने बता दिया की मेरी तबियत खराब है उसने मुझे कई घंटे सोने की सलाह दी | और मुझे मेरे कमरे में बिस्तर पर पहुचा दिया गया | उसके बाद उस दिन मैंने   हेल्कोप्टर में यात्रा ना करने की कसम खाई | लेकिन मुशीबत ये है की यंहा हवाई अड्डा नहीं है इस लिए मुझे वापिसी की यात्रा भी हेल्कोप्टर में ही करनी पड़ेगी | लगता है फिर नाटक करना पडेगा |



8 comments:

  1. रोचक विवरण|

    मौका लगते ही वहां के पुरे हालातों की चर्चा करते रहिये|

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  2. बड़ा ही रोचक वर्णन व अफगानिस्तान के हालात बयां करती पोस्ट।

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  3. नरेश भाई आप नौकरी करने गए थे या फौज में भर्ती होने? बड़ा अजीब सा वाकया है। आपने जिज्ञासा बढ़ा दी है। अगली कड़ी का इन्‍तजार रहेगा।

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  4. बहुत दुःख होता ये जानकर कि न जाने कितने ऐसे भारत के साथी है जिनको ..परेशान होता पड़ता है .......वाकई आपको लेकर काफी चिंतित हूँ ...कि कितना बढ़िया होता कि आपको भारत में ही बढ़िया कम्पनी में काम मिलता ..खैर ..अपने काम के बारे में भी बताइयेगा

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  5. ऐसी परिस्थिति में में नाटक का सहारा लेना बुरा नहीं होगा।

    प्रणाम

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  6. हम्म मेरी भी अफ़्रग़ानिस्तान यात्रा due है पर मैं इसे टालता आ रहा हूं

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  7. आगे की बताओ। लग रहा है कि सौ साल पहले की कोई कथा पढ रहे हैं।

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