Friday, October 8, 2010
मंडावा के बैध जी (एक रोचक दास्तान )
मंडावा शेखावाटी का एक दर्शनीय स्थल है | प्राचीन कस्बा है | सेठ साहूकार और रजवाडो का गाँव मंडावा झुंझुनू से बीकानेर के रास्ते में झुंझुनू से 27 कि.मी. है | वहां हमेशा देशी विदेशी सैलानियों की आवा जाही बनी रहती है | जिसके चलते बहुत से लोगो का पेशा पर्यटन से परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है |
किसी समय में मेरा भी यहां रोजी रोटी का सम्बन्ध रहा है |10 -12 साल पहले यहां एक फर्नीचर निर्यात करने वाली कंपनी (हाई लैंड हाऊस प्रा.ली.) का कारखाना हुआ करता था | मै भी उस कारखाने में काम करता था | काम जैसा दूसरे कारखानों में होता है वैसा बिलकुल नहीं था | यहां एक दम सरकारी काम था | 10 मजदूर, उन पर मेरे जैसे 5 सुपरवाइज़र यानी की सारा दिन ताश पाती खेलने और गप्पे हांकने में बीतता था | उसी समय का यह किस्सा जो दोस्तों की ज़बानी सुना वही बता रहा हूँ |
वहां गाँव में एक बैधजी हुआ करते थे | उनको आस पास में लोग बहुत मानते थे और पुराने समय में दूर दूर तक कोइ अच्छा डॉक्टर भी नहीं मिलता था | सो बैधजी के यहां काफी भीड़ भी रहती थी वैध जी सभी की तन और मन से सेवा करते थे | उनके परोपकार की भावना से ही लोग ठीक भी हो जाते थे |
एक बार एक औरत अपने छोटे बच्चे को लेकर आयी उसे शायद कोइ बुखार जैसी बीमारी थी, लेकिन बच्चा एक दम मरियल सा था | बैधजी ने अपनी 10 मिली वाली सिरिंज में इंजैक्शन भरा और बालक के लगाया | अचानक उस औरत का ध्यान नीचे की और गया और वो बोली "ओ बैधजी यो के कर रया हो थे, सारी दवाई तो नीचे ही बिखर गयी" | हुआ यू की बालक का हाथ बहुत पतला था और सिरिंज बड़ी वाली सो सूई बालक के हाथ के पार हो गयी थी और दवा सारी की सारी जमीन पर बिखर गयी थी | अब बैधजी ने उत्तर दिया " अरे बावली बूच तैने बेरो कोनी जितनी शरीर मै मांग थी उतनी दवाई शरीर रख ली बाकी की बारे नै निकाल दी है |"
इस प्रकार के वैध जी जी भी अपने समय के सफल बैध थे | ये उनके निःस्वार्थ सेवा का ही प्रतिफल था | की लोगो की सभी बीमारियां एक ही दवा से ठीक हो जाती थी | और उनका दर्जा आज कल के झोला झाप डाक्टरों से कही ज्यादा ऊंचा था |
राम राम
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ऐसे ही एक वैध जी हमारे गांव के पास स्थित खूड में हुआ करते थे एक बार किसी ढाणी से एक किसान की औरत उनके पास आई उसके पेट दर्द था ,वैध जी ने एक पर्ची में दवा लिखकर दी की ये ले लेना दर्द ठीक हो जायेगा और परसों आकर फिर दिखाना , जब तीसरे दिन औरत वापस आई तो वैध ने वो दवा वाली पर्ची मांगी तब उस औरत ने तपाक से जबाब दिया कि उस पर्ची को तो मैंने पीस कर पानी के साथ फांक लिया था और तब से बिलकुल ठीक हूँ |
ReplyDeleteतब वैध जी बोले ठीक है एसा ही करना था अब तू जा तेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा !!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवो करखाना बंद करवा दिया आप्के ताश के पत्तो ने:)पोस्ट ओर सभी टिपण्णियां मजे दार जी.
ReplyDeletesunder katha hai
ReplyDeleteये भी जोरदार किस्सा रहा, और शेखावत जी का भी गजब रहा, भाई आप सच मानो या झूंठ, हमारे गांव मे एक हरिजन अपनी लुगाई का इलाज कराते कराते बैद्य (झोला छाप)बन गया और इंजेक्शन फ़ेंक के मारता था.:) और साहब वो भी खूब चला. क्योंकि उन दिनों में दवा डाक्टर के कोई साधन नही थे सिर्फ़ अपनी अटूट आस्था ही दवा का काम कार्ती थी.
ReplyDeleteरामराम.
नि:स्वार्थ भावना का फ़ल मिलता है।
ReplyDeleteइस एक पोस्ट से तीन किस्से मिले। मजा आ गया।
नरेश जी बहुत खुब पहले ऐसे ओझा हर गांव में लगभग मिल ही जाया करते थे और कोई चारा भी तो नहीं था इनके अलावा गांवों की सारी जनता इन्हें ही भगवान और डॉक्टर दोनों मानती थी
ReplyDeleteऐसे एक वैध जी हमारें यहा बगड़ में भी थे
बढिया अनुभव सुनाया आपने.
ReplyDeleteबढिया किस्सा सुनाया आपने.....दरअसल काम तो इन्सान का विश्वास ही करता है. भले ही वो कोई झोलाझाप हो या एम.बी.बी.एस..
ReplyDeleteसुन्दर अनुभव
ReplyDeleteबहुत रोचक कथा है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर किस्सा है
ReplyDeleteकभी www.aapnofatehpur.blogspot.com पर भी नजर ए इनायत कीजिये
भाई नरेश जी, मरीज तो ठीक हो ग्या ना। चाहे सुसरा ईलाज कोई सा भी हो। एक बर लालु बैरी बोल्या के गर किसी का कान काट के खाण सै मेरी बीमारी ठीक होती हो तो इस माईक आळे कान इब्बे ही काट कै खा जाऊगा।
ReplyDeleteराम राम
are bhayo mane dekho hindi me to likno aav koni to english me hi ma b meri dil ki bat bol du. mandawa ma ek aiso vaid ji b ha so dekhna ma to muh sui so lage ha par bhayo pait kui so lage ha.
ReplyDelete5 k.g. dudh ki khir akelo hi kha jawv.