शीर्षक देख कर चौकिये मत | ऐसा भी समय था जब मै भीख मांगता था | इस बात को बताते हुए मुझे पहले संकोच हुआ लेकिन आज बलोग जगत में सब अपने है किसी से बताते हुए क्या हिचकिचाना |
ये सद्गुरुजी का आधा उपदेश है क्यों कि भीख मांगना हमेशा ही बुरी बात नहीं होती है कभी कभी भीख मांगना अच्छा कार्य भी माना जाता है |बात काफी पुरानी है शायद 1980 के आस पास की है | मै प्राथमिक स्कूल में पढता था | उस समय बच्चो के पास समय बिताने का तरीका या आमोद प्रमोद का तरीका भी थोड़ा अलग था | हम बच्चे, मोहल्ले भर के जानवरों पर विशेष कृपा दृष्टी रखते थे ,विशेषकर कुत्तों पर | मोहल्ले के कुत्तों को दुसरे मोहल्ले के कुत्तों से लड़वाने में भी मजा आता था खूब हूटिंग करते थे |
इसी सिलसिले में जब कोइ कुतिया का प्रसव होता था तब मोहल्ले के बच्चे इकट्ठे होकर उस की सेवा करते थे | उसके रहने खाने की व्यवस्था की जाती थी | सर्दी से बचाने का इंतजाम किया जाता था | इन सब कार्य हेतु जो सामग्री लगती थी उसके लिए हम भीख मांगते थे |
ये भीख माँगना भी अलग तरह से होता था | एक कड़ाही का इंतजाम किया जाता उस कड़ाही को दो बच्चे दोनों तरफ से पकड़ते और साथ में पूरा दलबल रहता था हर घर पर जाकर पूरी लय और राग के साथ एक पध बोला जाता था| जो बोला जाता था वो मै भूल गया हूँ इसका सार ये था कि गृह मालिक को ये बताना कि मोहल्ले में कुतिया के प्रसव हेतु सामग्री जुटा रहे है | पध को सुनकर गृह मालिक अपनी क्षमतानुसार हमें भीख देता था | जिसमें आटा,तेल,गुड़,पुराना कपड़ा आदि होता था अगर कोइ दरियादिल होता तो नगद भी मिल जाता था|ये क्रम 10-15 रोज तक चलता था |
आजकल पशुओं के प्रति प्रेम जन साधारण में कम हो गया है | बच्चों का बचपन उनके कैरियर कि चिंता में घुल गया है | आवारा कुत्ते भगवान भरोसे रह रहे है | काले कुत्तों की ख़ातिर तवज्जो फिर भी शनिवार को हो जाती है | बाकी बेचारे भगवान भरोसे है |
मांगन मरण सामान है मत मांगो भीख |
मांगन से मरना भला ये सदगुरू कि सीख ||
ये सद्गुरुजी का आधा उपदेश है क्यों कि भीख मांगना हमेशा ही बुरी बात नहीं होती है कभी कभी भीख मांगना अच्छा कार्य भी माना जाता है |बात काफी पुरानी है शायद 1980 के आस पास की है | मै प्राथमिक स्कूल में पढता था | उस समय बच्चो के पास समय बिताने का तरीका या आमोद प्रमोद का तरीका भी थोड़ा अलग था | हम बच्चे, मोहल्ले भर के जानवरों पर विशेष कृपा दृष्टी रखते थे ,विशेषकर कुत्तों पर | मोहल्ले के कुत्तों को दुसरे मोहल्ले के कुत्तों से लड़वाने में भी मजा आता था खूब हूटिंग करते थे |
इसी सिलसिले में जब कोइ कुतिया का प्रसव होता था तब मोहल्ले के बच्चे इकट्ठे होकर उस की सेवा करते थे | उसके रहने खाने की व्यवस्था की जाती थी | सर्दी से बचाने का इंतजाम किया जाता था | इन सब कार्य हेतु जो सामग्री लगती थी उसके लिए हम भीख मांगते थे |
ये भीख माँगना भी अलग तरह से होता था | एक कड़ाही का इंतजाम किया जाता उस कड़ाही को दो बच्चे दोनों तरफ से पकड़ते और साथ में पूरा दलबल रहता था हर घर पर जाकर पूरी लय और राग के साथ एक पध बोला जाता था| जो बोला जाता था वो मै भूल गया हूँ इसका सार ये था कि गृह मालिक को ये बताना कि मोहल्ले में कुतिया के प्रसव हेतु सामग्री जुटा रहे है | पध को सुनकर गृह मालिक अपनी क्षमतानुसार हमें भीख देता था | जिसमें आटा,तेल,गुड़,पुराना कपड़ा आदि होता था अगर कोइ दरियादिल होता तो नगद भी मिल जाता था|ये क्रम 10-15 रोज तक चलता था |
आजकल पशुओं के प्रति प्रेम जन साधारण में कम हो गया है | बच्चों का बचपन उनके कैरियर कि चिंता में घुल गया है | आवारा कुत्ते भगवान भरोसे रह रहे है | काले कुत्तों की ख़ातिर तवज्जो फिर भी शनिवार को हो जाती है | बाकी बेचारे भगवान भरोसे है |
अब पशुओं के प्रति प्रेम की बात तो छोडो इंसानों के प्रति भी प्रेम कम हो गया है | बचपन में आपकी मित्र मण्डली द्वारा किया गया यह कार्य भीख नहीं इसे तो निरीह जानवरों के लिए सहायता सामग्री इक्कठा करना माना जायेगा |
ReplyDeleteपर अब आजकल की नई पीढ़ी में ऐसी संवेदना कहाँ ?
सच मे यह भीख तो एक पुन्य का काम था, यह बेजुबान जानवर हमारे घरो की रखबाली मुफ़त मे करते हे, हमारे मुह्ल्ले मे भी दो तीन पार्टिया थी, कुत्तो कि, मजाल हे कोई बेगाना आदमी बिना किसी की मदद के हमारे मुह्ह्ले मे आ जाये, ओर बदले मे हम उन्हे वासी रोटी देते थे, ओर दुतकार भी देते थे, आप का लेख पढ कर दिल भर आया,बहुत सुंदर काम करते थे आप, एक निस्वार्थ सेवा, धन्यवाद
ReplyDeleteबता दिया कि किसी की सेवा किस तरह से की जाती है ..उसमें किसी तरह का अहम् नहीं होता तभी तो आप एक कुते के लिए भीख मांगते थे ..क्या बचपन था आपका प्रेम से भरा हुआ ...सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteये प्रेम बड़ा अनमोल ये साधो..
ReplyDeleteप्रेम बड़ा अनमोल...
भीख मंगाए , क्या कुछ ना कराये
प्रेम बड़ा अनमोल रे साधो...
इस उच्च उद्देश्य के लिए भीक मांगना भी सराहनीय है..बचपन वास्तव में जिंदगी का सर्वोत्तम समय है ..
ReplyDeleteपशु प्रेम भी मन को संवेदनशील बनाता है...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ...यह भीख नहीं दान करवाने का तरीका था ..
ReplyDeleteयह भीख नहीं है चन्दा है। आपने गली के कुत्तों के बारे में चिन्ता जाहिर की। इसका भी एक अन्य पक्ष है। आजकल गली या घर के बाहर कुत्ते दिखायी नहीं देते। वे ऐसे स्थान पर मिलते हैं जहाँ लोग सुबह घूमने जाते हैं। ये घूमने वाले लोग इन्हें रोटी खिलाते हैं। मैं इसे उचित नहीं मानती। इसलिए कि कुत्ते चौकीदारी का काम करते थे और जिस भी घर या गली की चौकीदारी करते थे वहाँ के लोग इनका ध्यान भी रखते थे जैसा कि आपने वर्णन किया लेकिन आज कुत्ते भी भीख पर पलने लगे हैं। इन्होंने भी चौकीदारी का काम छोड़ दिया है और जो भी घूमने जाता है उसके पीछे पड़ जाते हैं। जैसे तीर्थस्थलों पर बन्दरों की भरमार रहती है वैसे ही। इसलिए जब कोई भी जीव स्वाभाविक कार्य करता है तब समाज उसका ध्यान रखता है लेकिन जब वे भिखारी की श्रेणी में आ जाते हैं तब समाज ध्यान नहीं रखता।
ReplyDeleteकुतिया के प्रसव पर हमने भी खूब लापसी (गुड-आटे का हलवा)
ReplyDeleteबना कर खिलाई है। :)
प्रणाम
बहुत ही प्रेरणादायी प्रसंग है। ऐसी भीख तो बहुत ही पुण्य कर्म है ।
ReplyDeleteजानवरों के प्रति प्रेम और सेवा की प्रशंशनीय भावना. बहुत सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह जी आपने तो पुराने जमाने की याद दिलादी यह कार्य हमने भी खूब किया और एक विशेष बात याद आती है कि ये प्रसव अक्सर सर्दी के दिनों में ही होता था.
ReplyDeleteरामराम
ये भीख कहाँ हुई ...शुभ कार्य के लिए किया गया कार्य भीख माँगना नहीं कहला सकता ...
ReplyDeleteप्रेरणादायक प्रसंग ...
कुत्ते के बच्चों को बहुधा मुहल्ले का सामूहिक उत्तरदायित्व मानकर पालते हैं बच्चे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख
ReplyDeleteकभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें . धन्यवाद .
अरे वाह, यह तो अच्छी बात सुनी. क्या कहीं से वह पध/गीत मिल सकता है जो आप लोग गाते थे?
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरणादायी प्रसंग है। धन्यवाद|
ReplyDeleteअसली इंसानियत यही है....
ReplyDeleteaajkal to BHEEKH mangna Antarrashtriya fashion hai...thode din pahle OBAMA aaya tha amerikan yuvaon ke liye BHARAT se nokri ki Bheekh mangne...
ReplyDeletesadhuwaad..
रतन सिंह जी की बात से सहमत हूँ नरेश भाई ! मैं भी इसे भीख नहीं मानता बल्कि आपके अच्छे दिल का सबूत मानता हूँ ! आपको शुभकामनायें !
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