पगडंडी |
जहां से सडक़ खत्म होती है वहां से शुरू होता है यह संकरा रास्ता बना है जो कई वर्षों में पॉंवों की ठोकरें खाने के बाद, इस पर घास नहीं उगती न ही होते हैं लैम्पपोस्ट सिर्फ भरी होती है खुशियॉं लोगों के घर लौटने की ! |
कैसे चुका पायेंगे तुम्हारा ऋण |
रात जिसने दिखाये थे हमें सुनहरे सपने किसी अजनबी प्रदेश के कैसे लौटा पायेंगे उसकी स्वर्णिम रोशनी कैसे लौटा पायेंगे चांद- सूरज को उनकी चमक समय की बीती हुई उम्र फूलों को खुशबू झरनों को पानी और लोगों को उनका प्यार कैसे लौटा पायेंगे खेतों को फसल मिट्टी को स्वाद पौधों को उनके फल ए धरती तुम्हीं बता कैसे चुका पायेंगे तुम्हारा इतना सारा ऋण । |
यह लालटेन |
सभी सोये हुए हैं केवल जाग रही है एक छोटी-सी लालटेन रत्ती भर है प्रकाश जिसका घर में पड़े अनाज जितना बचाने के लिए जिसे पहरा दे रही है यह रातभर । |
राजस्थान के लोक देवता
पहेली से परेशान राजा और बुद्धिमान ताऊ
माली गाँव :मन मोहक नजारा गणेशोत्सव की झांकी का
बहुत ही अच्छी कविताएं निकाली हैं आपने उनके खजाने से...धन्यवाद
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/
तीनों ही रचनाएँ बढ़िया लगी
ReplyDeletesunder hai
ReplyDeleteतीनों दमदार रचनायें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी सभी रचनाये, धन्यवाद
ReplyDeleteतीनों जबरदस्त!!
ReplyDeleteपगडंडी और लालटेन तो अंकित हो गई..बहुत आभार!!
वाह्! आप भी बेहतरीन कविताएं चुन के लाए हैं....अंतिम कविता तो कईं बार पढी.
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त रचनाएं. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.