चिड़ावा - शेखावाटी में बहुत से कस्बे है | उनमे चिडावा कस्बा भी प्रसिद्ध है | चिडावा कस्बा जिला मुख्यालय झुंझुनू से 30 किमी तथा राजधानी जयपुर से २२० किमी पिलानी से १५ किमी दूरी पर स्थित है | यह कस्बा सेठ साहुकारो का रहा है | यह कस्बा बहुत सी बातो के लिए प्रसिद्ध रहा है |
चिडावा कस्बे में जिधर भी आप हलवाई की दूकान देखेंगे एक बोर्ड जरूर लगा हुआ होगा " लालचंद के मशहूर पेड़े यहाँ मिलते है " | यह लाल चंद कौन था यह तो मै भी नहीं जानता ,लेकिन उसके बनाए हुए पेड़े बहुत प्रसिद्ध हुए है और उसके नाम का फायदा सभी मिठाई विक्रेता उठाना चाहते है |
इस कस्बे में आप कहीं भी सूअर नहीं देख सकते है क्यों की यहां सूअर पालन असम्भव है | यहां के प्रसिद्ध संत बाबा गणेश नारायण जी (बावलिया पंडित जी ) ने किसी समय यह कहा था की यहां कोइ भी सूअर ज़िंदा नहीं रह पायेगा यानी की कोइ भी सूअर पालन नहीं कर पायेगा | इस लिए अब यह कस्बा सुअर मुक्त है | बहुत से लोगो ने पालने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाए | अगली पोस्ट मै गणेश नारायण जी के बारे में ही लिख रहा हू |
यह कस्बा डालमिया घराने का पुश्तैनी गाँव भी है |
Saturday, May 29, 2010
Saturday, May 22, 2010
मेरा नया ब्लॉग "खोया पाया"
मैं ने एक नया ब्लॉग शुरू किया है जिसका शीर्षक खोया पाया रखा है इस ब्लॉग में मै चाहता हूँ की पाठक लोग जिनका कोइ रिश्तेदार ,दोस्त या घनिष्ठ प्रेमी खो गया है या बहुत समय से उनकी कोइ खबर नहीं है| कई बार ऐसा हो जाता की उनके फोन नंबर भी हमारे पास नहीं रहते है | आप लोग लोग मुझे इसके बारे में बताए तो मै इस पर प्रकाशित करूं जिससे वे अपने पुराने( बचपन के ) दोस्तों से जान पहचान वालों से दुबारा मिल सके | अब आप यह कहेंगे की जब इतनी सारी वेब साइट है इस काम के लिए तो आपको यह ब्लॉग बनाने की क्या जरूएरत पड गयी |
बात दरअसल यह है की इन वेब साईटों की एक सीमा होती है एक फ़ार्म भरकर आपको इस पर सब मिट करना पड़ता है | तथा इसका भाषा माध्यम भी अँगरेजी ही होता है |
लेकिन मेरे इस ब्लॉग पर आपको सब कुछ अलग ही मिलेगा | मुझे भी इस प्रकार के एक प्लेटफार्म की आवश्यकता महसूस हो रही थी | इस ब्लॉग का पूरा दारोमदार पाठको व ब्लोगर मित्रों पर निर्भर करेगा | वो इस प्रकार की समस्याएं भी रखे और हो सके तो सुलझाने में मदद भी करे |.... राम राम |
बात दरअसल यह है की इन वेब साईटों की एक सीमा होती है एक फ़ार्म भरकर आपको इस पर सब मिट करना पड़ता है | तथा इसका भाषा माध्यम भी अँगरेजी ही होता है |
लेकिन मेरे इस ब्लॉग पर आपको सब कुछ अलग ही मिलेगा | मुझे भी इस प्रकार के एक प्लेटफार्म की आवश्यकता महसूस हो रही थी | इस ब्लॉग का पूरा दारोमदार पाठको व ब्लोगर मित्रों पर निर्भर करेगा | वो इस प्रकार की समस्याएं भी रखे और हो सके तो सुलझाने में मदद भी करे |.... राम राम |
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मेरे अन्य बलोग
Friday, May 21, 2010
परीक्षा परिणाम देखने के लिए भारत की नंबर वन साइट
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फोटो को स्पष्ट व बड़ा देखने के लिए इस पर क्लिक करे |
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जानकारी,
महत्वपूर्ण वेब साईट
Wednesday, May 19, 2010
मेरा नया नोकिया फोन और उबंटू ( लिनक्स )
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नोकिया २७३० क्लासिक |
नोकिया के फोन बहुत अच्छे आते है लेकिन वो अपने साफ्टवेयर नोकिया पी सी सूट के साथ ही काम करते है | इसकी विशेषताओं के बारे में मै यहां ज्यादा नहीं लिखूंगा क्यों कि यह आप कन्नू भाई की पोस्ट में पढ़ सकते है | जितना कन्नू भाई ने इसकी नेट की स्पीड के बारे में बताया उतना दम मुझे तो नजर नहीं आया | जितनी स्पीड आम दूसरे नोकिया फोनों में मिलती है इसकी भी उतनी ही है | यह ३जी सपोर्ट करने वाले फोनों में सबसे सस्ता फोन है | लेकिन इसकी सुविधा हमारे यंहा (बगड़ में ) शुरू होने में शायद 5या 10 साल लगेंगे | बी एस एन एल का काम वैसे भी धीमा चलता है | साधारण सिम के साथ यह बहुत अच्छी स्पीड कैसे देता है यह जानकारी खोजने का काम मेरे यंहा चालू है आपको पता हो तो जरूर बताए |
रतन सिंह जी ने इस पोस्ट में लिखा की आप उबंटू का प्रयोग नेट की स्पीड के लिए आजमा सकते है | मैंने भी आजमाने का निश्चय किया | अपने नोकिया फोन को उनके बताये अनुसार उबंटू में कनेक्ट किया | कनेक्ट करना बच्चो के खेल जैसा है बहुत ही आसान है | ना किसी ड्राइवर की आवश्यकता है ना किसी सोफ्टवेयर की लेकिन इंटरनेट की गती वंहा भी उतनी ही मिली कोइ विशेष फायदा नहीं हुआ |
इंटरनेट की स्पीड के बारे में मैंने एयर टेल और रिलायंस जी एस एम् के बीच तुलना की, तो पाया की रिलायंस जी एस एम् की स्पीड जितनी वो लोग बताते है उतनी ही मिलती है यानी की 156 के बी पी एस की लेकिन एयरटेल के मुकाबले में महंगा भी है 2 रू./एम् बी है | अगर आप 1100 के बी डाटा काम में ले लेते है तो चार रूपये कट जायेंगे | जबकि एयर टेल में 30पैसा /50के बी है | एयर टेल का डाटा प्लान यंहा राजस्थान में बहुत अच्छा है | 19 रूपये में 200 एम् बी तीन दिन के लिए वैधता | 98 रूपये 2 जी बी एक महीने की वैधता | 395 रूपये अन लिमिटेड एक महीने के लिए जबकि रिलायंस जी एस एम् में डाटा प्लान नहीं मिलता है |
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मोबाइल कंपनी
Wednesday, May 5, 2010
गलोबल वार्मिंग की चपेट में आयी शेखावटी की ओरगेनिक सब्जीया
आजकल वातावरण में जो तेजी से बदलाव आ रहा है | उसका मानव जीवन पर भी असर पड रहा है | पिछले हफ्ते मै अपने खेत पर गया था | आप तो जानते ही है की यहाँ शेखावाटी के अन्य लोगो की तरह मै भी ऑर्गेनिक सब्जी का बड़ा शौकीन हूँ | इस मौसम में इस वर्ग की दो सब्जी यहाँ मिलती है एक खेजडी( रेगिस्तानी पेड़)की फली जिसे सांगर या सांगरी कहा जाता है | दूसरी सब्जी है कैर (टींट) | इन दोनों सब्जियों की इस मौसम में बहुतायत से उपलब्धता होती है |
मार्च के महीने में खींपोळी की पैदावार होती है जो इस बार कम ही रही थी | पिछले साल इसके बारे में मैंने लिखा था तो काफी लोगो ने इसके बारे में जानकारी मांगी | बहुत से विदेशी लोगो ने ( इजराइली ) तो इसके बीज की मांग भी की थी | मै आपको बता रहा था कि पिछले हफ्ते मै खेत में गया था | अपनी बकरी को साथ लेकर के ( आश्चर्य मत कीजिये मै एक बकरी भी रखता हूँ ) और अपना सहायक टूल को लेकर जो बड़े से बांस का बना हुआ है | राजस्थान के लोग जानते है कि इसका उपयोग भेड बकरी पालन करने वाले ऊँचे पेड की टहनी वगैरा अपने पशुओ को खिलाने हेतु इसका उपयोग करते है |
मै गया था बहुत आशा लेकर के लेकिन वहा जा के पेड़ों की हालत देखकर भविष्य की भयावहता का अंदाजा लग गया | पर्यावरण को लेकर पर्यावरणविदों की चिंता बहुत ही जायज़ है | आज शहर में रहकर कूलर ए सी में दिन बिताने वालो को ग्लोबल वार्मिंग का डर शायद अभी नहीं सताएगा लेकिन ग्रामीणों को अभी से अंदाजा लगने लग गया है, कि आने वाले पांच दस वर्षों में क्या बदलाव आने वाला है |
आप भी फोटो को देख कर अंदाजा लगा सकते है | पिछले पन्द्रह रोज के तापमान पर आप नजर डालें तो आपको पता चलेगा कि इस वर्ष गर्मी की शुरूआत में ही आम जन ऊंचे तापमान से त्रस्त हो उठा था | यही दौर था जब इन पेडों पर फूल व फली लगने का समय होता है | ये फूल व फली इस समय के ऊँचे तापमान को सहन नहीं कर पाए और इनका विकास जहा का तन्हा रुक गया | जिस पेड पर पांच फली लगी वहा छठी की गुंजाइश ही नहीं रही वो पांच ही झुलसकर लकड़ी में परिवर्तित हो गयी | फूल फली बने बगैर ही पेड पर से झड़ गए |मुझे आध किलो सब्जी के लिए तीन चार किमी तक घूमना पड़ा तब कही एक समय की सब्जी का जुगाड हुआ है |
वैसे रेगिस्तान के पेड पौधे ऊँचे तापमान को सहने के लिए जाने जाते है लेकिन कितना ऊंचा उसकी कोइ सीमा तो है | अब वो सीमा भी प्रकृति लांघ गयी है | हर वर्ष 20 से 25 अप्रैल के मध्य तापमान 30 से 35 डिग्री सैंटिग्रेड रहता है वही इस समय दौरान यहां का तापमान 45 डिग्री सैंटिग्रेड तक पहुँच गया | और जब 45 डिग्री हमेशा रहता है यानी की मई के शुरआती हफ्ते में तो आजकल 37 डिग्री से ऊपर नहीं जा रहा है | हो सकता है आज कल में बारिश व ओले भी गिरने लगे | और जब सावन भादों आएगा तब आंधिया व लू के थपेड़े चलेंगे | इसी का नाम तो है ग्लोबल वार्मिंग |.
Related post- राजस्थान कि ओर्गेनिक सब्जी
मार्च के महीने में खींपोळी की पैदावार होती है जो इस बार कम ही रही थी | पिछले साल इसके बारे में मैंने लिखा था तो काफी लोगो ने इसके बारे में जानकारी मांगी | बहुत से विदेशी लोगो ने ( इजराइली ) तो इसके बीज की मांग भी की थी | मै आपको बता रहा था कि पिछले हफ्ते मै खेत में गया था | अपनी बकरी को साथ लेकर के ( आश्चर्य मत कीजिये मै एक बकरी भी रखता हूँ ) और अपना सहायक टूल को लेकर जो बड़े से बांस का बना हुआ है | राजस्थान के लोग जानते है कि इसका उपयोग भेड बकरी पालन करने वाले ऊँचे पेड की टहनी वगैरा अपने पशुओ को खिलाने हेतु इसका उपयोग करते है |
मै गया था बहुत आशा लेकर के लेकिन वहा जा के पेड़ों की हालत देखकर भविष्य की भयावहता का अंदाजा लग गया | पर्यावरण को लेकर पर्यावरणविदों की चिंता बहुत ही जायज़ है | आज शहर में रहकर कूलर ए सी में दिन बिताने वालो को ग्लोबल वार्मिंग का डर शायद अभी नहीं सताएगा लेकिन ग्रामीणों को अभी से अंदाजा लगने लग गया है, कि आने वाले पांच दस वर्षों में क्या बदलाव आने वाला है |
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पेड पर झुलसी हुयी सांगरी |
वैसे रेगिस्तान के पेड पौधे ऊँचे तापमान को सहने के लिए जाने जाते है लेकिन कितना ऊंचा उसकी कोइ सीमा तो है | अब वो सीमा भी प्रकृति लांघ गयी है | हर वर्ष 20 से 25 अप्रैल के मध्य तापमान 30 से 35 डिग्री सैंटिग्रेड रहता है वही इस समय दौरान यहां का तापमान 45 डिग्री सैंटिग्रेड तक पहुँच गया | और जब 45 डिग्री हमेशा रहता है यानी की मई के शुरआती हफ्ते में तो आजकल 37 डिग्री से ऊपर नहीं जा रहा है | हो सकता है आज कल में बारिश व ओले भी गिरने लगे | और जब सावन भादों आएगा तब आंधिया व लू के थपेड़े चलेंगे | इसी का नाम तो है ग्लोबल वार्मिंग |.
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