
आठ वे दिन ईशर जी पत्नी (गणगौर ) के साथ अपनी ससुराल पधारते है | उस दिन सभी लड़कियां कुम्हार के यहाँ जाती है और वहा से मिट्टी की झाँवली ( बरतन) और गणगौर की मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी लेकर आती है | उस मिट्टी से ईशर जी ,गणगौर माता, मालन,आदि की छोटी छोटी मूर्तिया बनाती है | जहा पूजा की जाती उस स्थान को गणगौर का पीहर व जहा विसर्जित की जाती है वह स्थान ससुराल माना जाता है |
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है | आज यानी की चैत्र मास की तीज सुदी को गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है | दोपहर बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है | यानी की विसर्जित किया जाता है | विसर्जन का स्थान गाँव का कुआ ,जोहड़ तालाब होता है | कुछ स्त्री जो शादी शुदा होती है वो अगर इस व्रत की पालना करने से निवर्ती होना चाहती है वो इसका अजूणा करती है (उधापन करती है ) जिसमें सोलह सुहागन स्त्री को समस्त सोलह श्रृंगार की वस्तुएं देकर भोजन करवाती है |
गणगौर माता की पूरे राजस्थान में जगह जगह सवारी निकाली जाती है जिस मे ईशर दास जीव गणगौर माता की आदम कद मूर्तीया होती है | उदयपुर की धींगा गणगौर, बीकानेर की चांद मल डढ्डा की गणगौर ,प्रसिद्ध है |
राजस्थानी में कहावत भी है तीज तींवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर | अर्थ है की सावन की तीज से त्योहारों का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही त्योहारों पर चार महीने का विराम आ जाता है | इस पोस्ट की बाबत जो जानकारी मिली है वो राजस्थानी भाषा के ब्लॉग आपणी भाषा-आपणी बात से मिली है | चित्र गूगल से लिए गए है ( किसी को आपत्ती हो तो बताये हटा दिए जायेंगे |)
बहुत अच्छी जानकारी | यहाँ फरीदाबाद में भी आजकल "गौर-गौर गोमती" के स्वर रोज सुनाई दे जाते है यहाँ राजस्थान के लोग काफी संख्या में रहते है अतः राजस्थानी स्त्रियाँ इक्कठा होकर जगह जगह गणगौर की पूजा करती है इनकी इस पूजा में अब राजस्थान के अलावा अन्य स्त्रियाँ भी शरीक होने लगी है |
ReplyDeleteआपणी भाषा आपणी बात ब्लॉग का परिचय कराने के लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत सूम्दर कथा बताई. आजकल ताई भी झुन्झनु (खेतडी) मे गणगौर पूज रही है. कल ही वहां से रवाना होगी.
ReplyDeleteरामराम.
सुंदर विवरण ... अच्छी जानकारी ।
ReplyDeleteसुन्दर एवं ज्ञान वर्धक आलेख
ReplyDelete- विजय
हमारे अपने त्योहार गणगौर के बारे में यहां जानकर काफी अच्छा लगा.. आभार
ReplyDeleteगणगौर आगरा में भी धूम-धाम से मनाया जाता है. लेकिन राजस्थान में इसका ज़्यादा महत्व है. आपकी पोस्ट से पर्याप्त जानकारी मिली, धन्यवाद
ReplyDeleteaap ne go bhi likha woh bahut hi aacho hai.
ReplyDeletemajohi aago pdha ke
thanx.
क्या अब कहीं कहीं नहीं लगता हैं कि राजस्थान के पर्व भी आधुनिकता की भेंट चढ रहे हैं। आज हमारे कस्बे की बात करे तो कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा है। पहले वाली बात आज नजर नहीं आ रही हैं। हां महिलाओं द्वारा घरों में पर्व घूमधाम से मनाया जाता हैं।
ReplyDeleteइसका मुख्य कारण हम पुरुषों में आई पाश्चात्य सभ्यता के प्रति झुकाव है थोड़ी सी हिम्मत और प्रयास से हम इस मानशिकता को बदल सकते हैं
Deletebahut achchha laga... hamare yahaan bhi gangour ki dhoom hai
ReplyDeletegokul pura agra me bhi kai barsho se gangour mela badi dhoomdham se manta hai
ReplyDeletegokul pura agra me bhi gangour mela lagta hai
ReplyDeleteGangour is Very Good Festival, Sohan Prajapati From Sirohi
ReplyDeleteधन्यवाद जानकारी देने के लिए....क्या आप अपने ब्लॉग में इस बात का विवरण दे सकते है मूलतः क्या खास वजह है जिससे निमाड़-मालवा में गणगौर माता के मायके आने पर ही गणगौर पूजा की जाती है. और कोई दिन क्यों नहीं की जाती? जेसे माताजी विवाह के दिन यां माताजी के जन्म दिन......
ReplyDeleteHa aapne bhut Shi baat btai...hmare sbhi mhilaye gangor ishar ji ki Pooja krti h...ek baat or...Saam ko ek ladki mitti ka kalsh lekr ghar ghar ghuma kr lati h...jisme Dipak jlta h...
ReplyDeleteHamare yahan mp m bhi gangaur bhut achhe se manate h
ReplyDeleteBihaniya kyu nai manate gangor,aur agar rajsthani ladki ki shadi hariyanviyon k yaha ho jaye to gangaur ki puja karne se mana kyu karte hai. Shiv parvati ki puja karne me kya dikkat
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