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Sunday, February 20, 2011

जब मै भीख मांगता था

     शीर्षक देख कर चौकिये मत | ऐसा भी समय था जब मै भीख मांगता था | इस बात को बताते हुए मुझे पहले संकोच हुआ लेकिन आज बलोग जगत में सब अपने है किसी से बताते हुए क्या हिचकिचाना |

मांगन मरण सामान है मत मांगो भीख |
मांगन से मरना भला ये सदगुरू कि सीख ||
   
      ये सद्गुरुजी का आधा उपदेश है क्यों कि भीख मांगना हमेशा ही बुरी बात नहीं होती है कभी कभी भीख मांगना अच्छा कार्य भी माना जाता है |बात काफी पुरानी है शायद 1980 के आस पास की है | मै प्राथमिक स्कूल में पढता था | उस समय बच्चो के पास समय बिताने का तरीका या आमोद प्रमोद का तरीका भी थोड़ा अलग था | हम बच्चे, मोहल्ले भर के जानवरों पर विशेष कृपा दृष्टी रखते थे ,विशेषकर कुत्तों पर | मोहल्ले के कुत्तों को दुसरे मोहल्ले के कुत्तों से लड़वाने में भी मजा आता था खूब हूटिंग करते थे |

      इसी सिलसिले में जब कोइ कुतिया का प्रसव होता था तब मोहल्ले के बच्चे इकट्ठे होकर उस की सेवा करते थे |  उसके रहने खाने की व्यवस्था की जाती थी | सर्दी से बचाने का इंतजाम किया जाता था | इन सब कार्य हेतु जो सामग्री लगती थी उसके लिए हम भीख मांगते थे |

      ये भीख माँगना भी अलग तरह से होता था | एक कड़ाही का इंतजाम किया जाता उस कड़ाही को दो बच्चे दोनों तरफ से पकड़ते और साथ में पूरा दलबल रहता था हर घर पर जाकर पूरी लय और राग के साथ एक पध बोला जाता था| जो बोला जाता था वो मै भूल गया हूँ इसका सार ये था कि गृह मालिक को ये बताना कि मोहल्ले में कुतिया के प्रसव हेतु सामग्री जुटा रहे है | पध को सुनकर गृह मालिक अपनी क्षमतानुसार हमें भीख देता था | जिसमें आटा,तेल,गुड़,पुराना कपड़ा आदि होता था अगर कोइ दरियादिल होता तो नगद भी मिल जाता था|ये क्रम 10-15 रोज तक चलता था |

      आजकल पशुओं के प्रति प्रेम जन साधारण में कम हो गया है | बच्चों का बचपन उनके कैरियर कि चिंता में घुल गया है | आवारा कुत्ते भगवान भरोसे रह रहे है | काले कुत्तों की ख़ातिर तवज्जो फिर भी शनिवार को हो जाती है | बाकी बेचारे भगवान भरोसे है |

Wednesday, February 16, 2011

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण (व्यंग्य)

(ये पोस्ट हमारे अजीज बाबू के.जी.महेश्वरी जी ने ईमेल के द्वारा भेजी है)

1.
सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.
. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.


3.
नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.


4.
अनुशासनप्रिय नायक: जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

5.
हास्य-रस का प्रेमी: उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक यु का 'लाफिंग बुद्धा' था.


6.
नारी के प्रति सम्मान: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता.


7.
भिक्षुक जीवन: उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना, चांदी, बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.


8.
सामाजिक कार्य: डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो जाएं. सरकार ने उसपर 50,000 रुपयों का इनाम घोषित कर रखा था. उस युग में 'कौन बनेगा करोड़पति' ना होने के बावजूद लोगों को रातों-रात अमीर बनाने का गब्बर का यह सच्चा प्रयास था.


9.
महानायकों का निर्माता: अगर गब्बर नहीं होता तो जय और वीरू जैसे लुच्चे-लफंगे छोटी-मोटी चोरियां करते हुए स्वर्ग सिधार जाते. पर यह गब्बर के व्यक्तित्व का प्रताप था कि उन लफंगों में भी महानायक बनने की क्षमता जागी.

Tuesday, February 8, 2011

बलात्कार यौन शोषण गैंगरेप (rape,gangrape Sexual harassment)

बलत्कार......रेप .......गैंगरेप ........सामूहिक बलात्कार .... यौनशोषण.....अश्लील एम एम एस ...नाबालिग का बलात्कार ....दलित लड़की .... !चलती गाड़ी में ....!

     अब आप सोच रहे होंगे की इन शब्दों का इस पोस्ट में क्या लिखने का क्या उद्देश्य है | अगर SEO की दृष्टी से देखा जाए तो पता चलेगा | वेब साइट निर्माण में या बलोग पोस्ट में इन शब्दों का कुछ महत्त्व होता है | ये शब्द पाठक को सर्च इंजन से पोस्ट तक लाते है लेकिन जब इन्ही शब्दों का प्रयोग चीख चीख कर टीवी पर होने लगे तो उसे आप क्या कहेंगे .....?  ये कौनसी मार्केटिंग पालिसी है कोइ समझाए भला ?
चित्र गुगल से साभार 

     एक समय था जब विदेशी (अंग्रेजी) चैनल अश्लीलता फैलाते यह कह कर उनका प्रवेश हमारे ड्राइंग रूम तक होने से रोक दिया जाता था | धीरे धीरे वही सब हिन्दी चैनलों पर परोसा जाने लगा | एक माध्यम केवल न्यूज चैनल बचे थे | उनके द्वारा भी प्रतिस्पर्धा के चलते टी आर पी में बढ़त हेतु वही सब दिखाया जाने लगा | बासी और फूहड़ द्विअर्थी संवादों वाली कामेडी या ऊपर दिए गए शब्दों वाली न्यूज |

     अब तो होड़ मची है कौन सा चैनल सबसे ज्यादा इस प्रकार की खबर दिखाए |इन खबरों को दिन भर दिखाए जाने पर छोटे छोटे बच्चो के द्वारा भी ये पूछा जाने लगा है की ये बलात्कार क्या होता है ? कभी कभी तो इन खबरों को देख कर ये वहम भी होने लगा है की हमारे देश में लोगो के पास बलात्कार के सिवाय दूसरा कोइ काम ही नहीं है नेता घोटाला करते है और आम आदमी बलात्कार कर रहा है | कौन कह सकता है की भारत में मर्दानगी की कमी है ,अखबारों में मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाओं का विज्ञापन तो केवल छलावा है | न्यूज चैनलों को देख कर तो अब यही लग रहा है की सबसे ज्यादा बलात्कार (Rape) भारत में ही हो रहे है बाकी समूची दुनिया में शांति है |

बालात्कार तो हो रहा है देश की संस्कृती का उसकी सभ्यता का और हमारे जैसे संवेदनशील दर्शकों का | अब तो रोजाना इस प्रकार की खबरे दिन भर आ रही है और मानवीय संवेदनाओं को जडवत बना रही है | जय हो बुद्धू बक्सा....... |

(अगर आप ये पोस्ट फेस बुक में  पढ़ रहे है तो बाकी पोस्ट पढने के लिए मुख्य ब्लॉग http://myshekhawati.blogspot.com पर पधारे )

Tuesday, February 1, 2011

नेता जीते काम हारा - जिला कलेक्टर मुग्धा सिन्हा का तबादला

    झुंझुनू जिला कलेक्टर श्री मति मुग्धा सिन्हा का झुंझुनू में कार्यकाल अब तक केवल चार माह का रहा है | चार माह में  उनके द्वारा किया गया उत्कर्ष्ट कार्य  ही उन के तबादले की वजह बन गया है | झुंझुनू जिला राजनीति का गढ़ रहा है | यंहा के  प्रशासनिक इतिहास को खंगाला जाए तो पता लगता है की जिस भी अधिकारी ने राजनीतिबाजो की बात नहीं मानी  उन्हें यहां से रूखसत होना पडा है | और जिन्होंने नेताओं से और भ्रष्ट तंत्र  से हाथ मिलाया है उन्होंने यहाँ पर मजे किये है |

     जैसे ही मुग्धा जी के तबादले की खबर आयी जिले भर में जन आक्रोश दिखाई पड़ने लग गया है | आज मंडावा और नवल गढ़ क्षेत्र बंद का आह्वान किया गया है | कल झुंझनू बंद की भी अपुष्ट खबर है शायद शाम तक तय हो जाएगा की जिला बंद रहेगा या नहीं | विभिन्न संगठनों ने आन्दोलन छेड़ने की बात भी कही है |
   
     मुग्धा जी के बारे में मेरी शेखावाटी पर पहले भी एक पोस्ट प्रकाशित की थी | आगर आपने नहीं पढी तो अब पढ़ सकते है | अगर तबादला एक समान्य प्रक्रिया के तहत होता है तो कोइ बात नहीं थी लेकिन स्वार्थ की गंदी राजनीति के तहत अगर तबादला किया जाता है तो वो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक है | इस प्रकार के तबादलों से बढ़िया काम करने वाले अधिकारियों का मनोबल भी  टूटेगा |
पीरामल स्कूल में आयोजित खेल प्रतियोगिता में मुग्धा जी द्वीप जलाते हुए 

पीरामल स्कूल में आयोजित खेल प्रतियोगिता में मुग्धा जी

पीरामल स्कूल में आयोजित खेल प्रतियोगिता में मुग्धा जी

     मुग्धा जी ने जो आशा की किरण जिले के नागरिको को दिखाई थी वो आज धूमिल होती दिखाई दे रही है | जन साधारण को उनके जैसे सराहनीय कार्य  करने वाले  अधिकारी से बहुत आशा थी | आज वे सपने और  आशाये टूट गयी है | झुंझुनू जिला अभी विकास के पंख लगा उड़ने वाला था लेकिन यंहा के नेता लोगो को और भ्रष्ट कारोबारियों को ये विकास चुभने लगा था | इस लिए उनके  लिए ये तबादला करवाना बहुत ही शान की बात हो गयी थी उपर से तुर्रा ये की नेताजी छाती ठोकते कह रहे है की तबादला उन्होंने करवाया है | ये समाचार  आप यंहा पढ़ सकते है |

हां ! मैंने ही करवाया कलेक्टर का तबादला

नेता जीते, काम हारा

कलेक्टर के पक्ष में आई पब्लिक, आज नवलगढ़-मंडावा बंद

 इसलिए लगा खेतड़ी एसडीएम को झटका?